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अहिंसा
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दादाश्री : जिस रूम में चींटियाँ निकली हों वह रूम बंद रखना। इसे उपद्रव कहा जाता है। कुदरत का नियम ऐसा है कि कुछ दिन उनका उपद्रव चलता रहता है। फिर उसका टाइम पूरा हो जाए तब उपद्रव बंद हो जाता है, अपने आप ही कुदरती ही! इसलिए हमें रूम बंद रखना, यह सब आप पता लगाओगे तो पता चलेगा। यह परमानेन्ट उपद्रव है या टेम्परेरी?
अहिंसा इतने सारे चोर होते हैं कि हम उनमें से बचे ही नहीं। हम कभी किसी की जेब काटने का, चोरी करने का विचार नहीं करते, इसलिए अपना वे काटते नहीं। इसलिए आप हिंसक के बदले अहिंसक रहोगे, तो हिंसा के संयोग ही आपको मिलेंगे नहीं ऐसा यह जगत् है। जगत् एक बार समझ लो तो निबेड़ा आए।
सहमति दे उसका गुनाह प्रश्नकर्ता : ये बरसात में गाँव में मक्खियाँ अधिक हो जाती है, मच्छर अधिक हो जाते हैं, तो म्युनिसिपालिटीवाले या अपने घर में सब 'फ्लिट' छिड़कते हैं, तो वह पाप ही कहलाएगा न? पर ऐसा यदि न करें तो महामारी भयंकर फैल जाती है।
प्रश्नकर्ता : अधिकतर चींटियाँ सब रसोई में ही आती हैं, तो रसोई किस तरह बंद रखनी?
दादाश्री : वह तो सब विकल्प है। हमें यह समझ लेना है। उपद्रव हो वहाँ से खिसक जाना, दो रसोई रखो, एक स्टोव अलग रखो। उस दिन कुछ उबालकर खा लेना। मारने की जोखिमदारी बहुत जबरदस्त है।
प्रश्नकर्ता : रोज़ के व्यवहार में अवरोध में आते हैं, उन्हें ही मार डालते हैं और दूसरे सबको तो मारने जाते नहीं।
दादाश्री : जिसे जीवजंतु मारने हैं उसे वैसे संयोग मिल आते हैं और जिसे नहीं मारने उसे वैसे संयोग मिल आते हैं।
थोड़ा समय नहीं मारने हैं' ऐसा प्रयत्न करोगे तो संयोग बदलेंगे। दुनिया के नियम यदि समझो तो हल है। नहीं तो फिर मारने का रिवाज छूटता नहीं। तो फिर संसार का रिवाज टूटेगा नहीं। भूलचूक से मर जाए उसका प्रतिक्रमण कर लेना कि माफ़ी माँगता हूँ।
प्रश्नकर्ता : हम भी इस दैनिक जीवन में ये सारी दवाईयाँ छिड़ककर सब जीवजंतुओं को मारते हैं, तो उसका इफेक्ट अपने पर होता है?
दादाश्री : मारते हो उस घड़ी अंदर तुरन्त ही परमाणु बदल जाते हैं और आपके अंदर भी मर जाते हैं। जितना आप बाहर मारोगे उतना अंदर मरेगा। जितना बाहर जगत् है उतना अंदर जगत् है। इसलिए आपको जितना मारना हो उतना मारना, आपके अंदर भी मरते रहेंगे। जितना इस ब्रह्मांड में है उतना पिंड में है।
दादाश्री : ऐसा है न, यह तुझ में, और उस सरमुखत्यार ने बम्बगोले डाले उसमें फर्क क्या है? तू उनमें से ही छोटा सरमुखत्यार बना!
प्रश्नकर्ता : पर यह तो गाँव की बात हुई न! यह बरसात है, तो बरसात में सब तरफ गंदगी तो होती ही है न। तब मच्छर-मक्खी सभी हो जाते हैं। तो म्युनिसिपालिटी क्या करती है कि सब जगह पर दवाई छिड़कती है।
दादाश्री : म्युनिसिपालिटी करती है, उसमें हमें क्या लेना-देना? हमारे मन में वैसा भाव नहीं होना चाहिए। हमारे मन में ऐसा होना चाहिए कि ऐसा नहीं हो तो अच्छा।
प्रश्नकर्ता : तो म्युनिसिपालिटी के जो काम करनेवाले लोग हैं, जो ओहदे पर होते हैं, उन्हें दोष लगता है?
दादाश्री : नहीं। उन्हें भी लगता-करता नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो किसे लगता है?
दादाश्री : वह तो सिर्फ करनेवाले ही हैं। उनसे कौन करवाता है? उनके ऑफिसर वगैरह सब।