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________________ १० अहिंसा दादाश्री : ऐसा है न, इस जगत् में कोई भी वस्तु त्रास देती है न, वह नियम से बाहर कोई त्रास दे सकें ऐसा है ही नहीं। इसलिए वह कानून से बाहर नहीं है। आप नियम के अनुसार त्रास प्राप्त कर रहे हो। अब आपको बचना हो तो आप मच्छरदानी रखो। दूसरा रखो, साधन करो। पर उसे मारना वह गुनाह है। प्रश्नकर्ता : बचाव करना, मारना नहीं है। अहिंसा इसलिए वर्ल्ड का दोष निकालना मत, आपका ही दोष है। आपने जितनी दखल की है उनके ही ये प्रतिघोष है। आपने दख़ल न करी हो, उसका प्रतिघोष आपको लगेगा नहीं। दादाश्री : हाँ, बचाव करना। प्रश्नकर्ता : पर मच्छर को मारें, पर 'श्रीराम' कहें तो उसकी गति ऊँची जाती है? दादाश्री : पर वह अपनी अधोगति करता है। क्योंकि उसे त्रास होता है? प्रश्नकर्ता : संतों को मच्छर काटते हैं या नहीं? दादाश्री : भगवान को काटे थे न ! महावीर भगवान को तो बहुत काटे थे। हिसाब चुकाए बिना रहते नहीं न! अपने ही हिसाब इसलिए एक मच्छर भी आपको छू नहीं सकता, यदि आप दखल न करो तो। इस बिस्तर में निरे खटमल हैं, और वहाँ आपको सुलाएँ और यदि आप दखल बगैर के हो तो एक भी खटमल आपको छुएगा नहीं। कौन-सा कानून होगा इसके पीछे? यह तो खटमल के लिए लोग विचार करनेवाले हैं न, कि 'अरे, चुन डालो, ऐसा करो, वैसा करो?' ऐसी दखल करते हैं न, सभी? और दवाई छिड़कते हैं? हिटलरिज़म जैसा करते हैं? करते हैं क्या ऐसा? फिर भी खटमल कहते हैं, 'हमारे वंश का नाश नहीं होनेवाला। हमारा वंश बढ़ता ही जानेवाला है।' इसलिए यदि आपकी दख़ल बंद हो जाएगी तो सब साफ हो जाएगा। दख़ल नहीं हो तो कुछ काटे ऐसा नहीं है इस जगत् में। नहीं तो यह दख़ल किसी को छोड़ती नहीं। हमेशा ही हिसाब चुकता हो गया ऐसा कब कहलाएगा? मच्छरों के बीच बैठा हो तब भी मच्छर न छुए, तब चुकता हो गया कहलाएगा। मच्छर उसका स्वभाव भूल जाता है। खटमल उसका स्वभाव भूल जाता है। यहाँ पर कोई मारता हुआ आया हो न, पर मुझे देखे तो वह मारना भूल जाता है। उसके विचार ही सारे बदल जाते हैं, उसे असर होता है, अहिंसा का इतना सारा इफेक्ट होता है। ___मच्छर को मालूम नहीं कि मैं चंदूभाई के पास जा रहा हूँ या चंदूभाई को मालूम नहीं कि यह मच्छर मेरे पास आ रहा है। यह 'व्यवस्थित' संयोगकाल सब ऐसा कर देता है कि दोनों को मिलाकर दोनों के भाव चुकता करके और अलग हो जाते हैं फिर। इतना अधिक यह 'व्यवस्थित' है! इसलिए मच्छर को हवा में खींचता खींचता यहाँ पर लाता है और डंक मारकर वापिस हवा में खिंच जाता है। फिर जाने कहाँ वह मील दूर गया होता है! जो टेढ़ा होता है उसे फल देता है वापिस। यानी एक मच्छर छूता है, वह गप्प नहीं है। तो दूसरी कौन-सी चीज़ गप्प में चलेगी?! और फिर यहाँ पैर के पास उसे छूना हो तब भी नहीं छू पाता, यहाँ हाथ पर ही छुए तभी मेल खाए, इस जगह पर ही! इतना अधिक गोठवणी (व्यवस्था, प्रबन्ध, आयोजन, सेटिंग)वाला यह जगत् है। यानी यह जगत् कोई गप्प है? बिलकुल 'रेग्युलेटर ऑफ द वर्ल्ड' है और वर्ल्ड को निरंतर रेग्युलेशन में ही रखता है और यह सब मैं खुद देखकर कहता हूँ। नहीं कर सकते कहीं भी, हिटलरिज़म वर्ल्ड में कोई आपमें दख़ल कर सके ऐसी स्थिति में ही नहीं है।
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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