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________________ परमात्मा होना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है प्रत्येक जीव बीजभूत परमात्मा है संसार में दो प्रकार के पदार्थ हैं, एक चेतन और दूसरे अचेतन। चेतन पदार्थ वे हैं जिनमें जानने की शक्ति है अथवा जो अनुभव कर सकते हैं, सुख-दुख का वेदन कर सकते हैं। इनके विपरीत, अचेतन या जड़ पदार्थ वे हैं जिनमें जानने की, अनुभव करने की शक्ति नहीं है, जो सुख-दुख का वेदन नहीं कर सकते। चेतन जाति के अन्तर्गत समस्त जीव आ जाते हैं, शेष सब पदार्थ अचेतन जाति के अन्तर्गत आते हैं। जितने भी जीव हैं, वे सब अलग-अलग हैं—प्रत्येक जीव की एक स्वतंत्र सत्ता है। उन सबके सुख-दुख, जीवनमरण, अनुभव और वेदना अलग-अलग हैं; जाति की अपेक्षा एक होते हुए भी व्यक्तित्व की अपेक्षा सब अलग-अलग हैं। पेड़-पौधों से लेकर चींटीमकोड़े, मच्छर-मक्खी, पशु-पक्षी, कछुआ-मछली, और मनुष्य-नभ-जलथल के सभी जीव-चेतना-शक्ति को लिये हुए हैं, इन सभी में जानने की शक्ति है। यहाँ तक कि सूक्ष्म जीवाणु (बैक्टीरिया, वाइरस, इत्यादि), जो सब जगह पाये जाते हैं, उनमें भी यह चेतना-शक्ति मौजूद है। जाति की अपेक्षा यद्यपि सभी जीव चेतन जाति के हैं, मूलभूत गुणों की अपेक्षा यद्यपि सबमें समानता है, तथापि उस चेतना-शक्ति की अथवा उन गुणों की अभिव्यक्ति सबमें समान नहीं है--बस यही इनमें पारस्परिक अन्तर है। मनुष्य में उस शक्ति की अभिव्यक्ति अपेक्षाकृत ज्यादा है; पशुपक्षियों में उससे कम है; मक्खी, चींटी, आदि में और भी कम है; पेड़-पौधों में उससे भी कम है; और, जीवाणुओं में तो बहुत ही कम है-इतनी कम कि वे अपनी चेतना-शक्ति को महसूस भी नहीं कर सकते। एक ओर, जीव की शक्तियाँ कम होते-होते जहाँ इस चरम सीमा तक कम हो सकती हैं, वहीं दूसरी ओर, बढ़ते-बढ़ते वे मानव में-जब वह मानवता के चरम उत्कर्ष को, महामानव अर्थात् परमात्म-अवस्था को प्राप्त करता है-परिपूर्णता के शिखर पर पहुँच सकती हैं। इस प्रकार प्रत्येक जीवात्मा में
SR No.009559
Book TitleParmatma hone ka Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherDariyaganj Shastra Sabha
Publication Year1990
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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