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________________ - (..) यों तो संसारमें और बहुतसे लोग हैं, सो कौन किसे समाने जाता है ? परंतु तुम हमारे घरके लड़के हो सो गुरु जनोंका कहना मानना ही उचित है । देखो, जो बहुत तृष्णा करता है वह अवश्य दुःख पाता है। सुनो, एक कथा कहता हूं कि किसी जंगल में एक ऊट चरनेके लिये गया था सो कुएके निकटके एक वृक्षकी पत्ती तोड तोड़ कर खाने लगा। खाते खाते ज्यों ही पत्ती तोडनेको ऊपरकी ओर मुंह किया कि अचानक आइपरसे मधुके छत्तमेसे मधुकी बूद आकर गिरी, सोमीठा मीठा स्वाद अच्छा लगा, तब और भी इच्छुक होकर ऊपरको देखने लगा और नव बहुत समय तक बूद न बाई, तो मुंह ऊपरको बढ़ाया, पर छचा ऊंचा होनेसे मुह वहां तक न पहुचा । तब ऊपरको उछाक मारी और उछलते ही कुएमें जा गिरा और वहीपर तड़फ तड़फ कर मर गया। इसलिये हे वाल! तृष्णा परभवका तजो, भोगो मुख भरपूर । वर्तमान तन आगवत, देखें सो नर कूर ।। तन धन यौवन सुहद जन, घर मुन्दर वर नार । ऐसा सुख फिर नहिं मिले, वर कोटि उपचार ॥" तब स्वामीने कहा- 'मामा! सुनो, एक कथा करता हूं कि एक सेठ परदेश जारहा था। राहमें प्यास लगो, सो वह आतुर होकर एक वृक्षके नीचे जा बैठा। वहांपर उसे चोरोंने घेरा और उसका सब धन लूट लिया सो प्रथम तो प्यास और फिर धन लुट गया, उसे दुःख दूना हुआ। वह वहां उदास हो पड़रहा और किसी प्रकार निद्रा आ गई सो सो गया। उसने स्वप्नमें एक निर्मल ल का भरा
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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