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विचर रहे है इसलिय जानबूझकर ऐसे भयंकर स्थानमें रहना वुद्धिमानोंको उचित नहीं है । समय पाकर व्यर्थ खो देना उचित नहीं। सच्चे माता पिता व गुरुमन वे ही है, जो अपनी सन्तानको उच्च स्थानपर देखकर खुशी होते है और जो उन्हें फंसाकर कुगतिमें पहुँचाते हैं वे हितू नहीं, उन्हें शत्रु कहना चाहिये । इसलिये हे गुरु जनो! आप लोगोंका कर्तव्य है कि अब मुझे और अधिक इस विषयमें लाचार न करें और न मेरा यह अमूल्य समय व्यर्थ गमा। जब विद्युतचरने ये बचन सुने और देखा कि अब समझाना व्यर्थ है, अर्थत्कुछ सार नहीं निकलेगा,तब अपना परिचय दे कहने लगा
"स्वामी ! मै आपसे बहुत झूठ वेला ! मैं हस्तिनापुरके राजा दुरद्वन्दका पुत्र हूँ। बाल्यावस्थासे चोरी सीखा, सो पिताने देशसे निकाल दिया, तब बहुत देशोंमें जागर चोरी के और वेश्याके यहां देता रहा । आज भी चोरीके निमित्त यहां आया था परन्तु यह कौतुक देखकर चोरी करना भूल गया अर अब अतिशय विरक्त हुआ हूँ। बड़े पुरुष जिस मासे चलें, उसी मार्गसे चलना श्रेष्ठ है। अब हे स्वामिन् ! आपसे एक भचन मांगता हूँ सो दीजिये कि मुझ दीनको भी अपना चरणसेवक बना लोन्येि अर्थात् साथ ले चलिये।"
तब स्वामीने यह स्वीकार किया और तुरंत ही उठकर खड़े होगये। यह देख सब लोग विलखत वदन हुए, परन्तु चित्राम सरीख रह गये कुछ मुंहसे शब्द नहीं निकलता था । सबके मनमें यही लग रही थी, कि कुवर घरहीमें रहें और दीक्षा न लें। नगर भरमें क्षोभ होगया, सब लोग रामा प्रना दौड़ आये।