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(२०) नहीं सकता था। यह खबर रानातक पहुंची और वहॉसे बड़े र योद्धा भी आ गये, परन्तु कुछ फल न हुआ। इसी समय स्वामी जंबूकुमार अपने मित्रों सहित कहीं जा रहे थे कि हाथी सूड उठाकर इनकी तरफ आया, मानों वह सूंड़ उठाकर स्वामीको नमस्कार ही करता था। यह देख साथी तो सब डरकर भाग गये, परतु स्वामी उस हाथीकी चेष्टा देखकर हँसे । नगरके लोग तो हाय हाय करके पुका. रने लगे कि अब क्या जानें यह हाथी इस वालकको छोड़ेगा या नहीं? दोडियो २ बचाइयो २ इत्यादि कहकर चिल्लाने लगे परंतु स्वामीने किंचित् भी भय न किया, और हाथीके सम्मुख आ कपड़ेको अमेठ कर जोरसे हाथीको मारा कि वह हाथी चीस मार भागने लगा। तब स्वामीने उसे पूंछ पकड़के रोक लिया और उसपर चढकर सात वार यहाँ वहॉ खूब दौड़ाया। नगरके लोग व राना यह कौतुक देख हर्ष और आश्चर्ययुक्त होगये। स्वामीको हाथीपर बैठे हुए घर आये देख माता पिता झट से गोदमें ले मुख चूममे और क्लेया लेने लगे तथा निछरावल कर पूछा-'पुत्र ! ऐसे कोमल पल्लवसमान हाथोंसे तुमने किस तरह ऐसे मदोन्मत्त हाथीको पकड़ लिया ? स्वामीने विनयपूर्वक उत्तर दिया-"पिताजी ! आपके चरणोके प्रसादसे हो, पकड़ा है। ठीक है
" बड़े बड़ाई ना करें; करें अपूरव काम । हीरा मुखसे ना कहे; लाख हमारो दाम"॥
इतनेमें स्वामीको बुलानेके लिये राजदूत आया और बड़े स नगनसहित राज्य दरबार में ले गया। स्वामीको दरबारमें आते देख सभागनोंने उटकर नमस्कार किया और रानाने भी उठकर अगवानी