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(२१) की, तथा अर्ध सिंहासनपर बैठाया। पश्चात् बहुत प्रीतिसहित बातचीत होनेके बाद रानाने कहा-"कुमार ! मैं चाहता हूँ कि आप नित्यप्रति दरवारमें आया करें," तब स्वामीने वह स्वीकार किया। पश्चात् राजाने छत्र, चमर,स्थ, पालकी आदि देकर इन्हें विदा किया।
एक दिन अहंदास सेठ अपने घरमें सुखासनपर बैठे थे कि बहुत द्रव्यवान् चार सेठ आकर विनती कर कहने लगे-"हे साहु हमारे घर चार अति ही रूपवती और गुणवती कन्याएँ हैं, सो हम आपके चिरंजीव जंवृकुमारको देना चाहते है, आशा है कि आप यह तुच्छ भेट स्वीकार कीमियेगा। तय अर्हदास सेठ आगन्तुक सेठोंको आदर सहित बैठाकर अपनी प्रिया जिनमतीके पास ना सव वृत्तांत कहने लगे। सो सुनकर सेठानी अतिहर्षित हो वोली-"स्वामिन् ! यह व्यवहार उचित ही है; अवश्य ही करना चाहिये । इस प्रकार पति-पत्नीने सम्मतिपूर्वक शुभ मुहूर्तमें सगाई (वाग्दान) कर दी और उत्साह मनाया। स्वामी नियमानुसार नित्य राजदरवारमें जाने लगे।
एक दिन अंगकीट नाम पर्वतका रहनेवाला गगनगति नाम विद्याधर सभामें आकर कहने लगा-"हे नरपाल ! इसी मगकीट पर्वतपर केरलपुर नाम नगर है । वहाँ राना मृगाक को कि मेरा वहनोई सुखसे राज्य करता है, उसके मंजु नामको एक कन्य है सो एक दिन रानाने मुनिसे पूछा-पुत्रीका वर कौन होगा? तब मुनिवरने कहाकि "राजगृहकिा राजा श्रेणिक होगा। यह सुनकर राजाने वह कन्या आपको देना निश्चय किया किन्तु जब यह खबर