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चतुथ अधिकार।
५७ कलश देखनेसे उसका शरीर समस्त शुभ लक्षणोंसे परिपूर्ण होगा। सरोवर देखनेसे लोगों की तृष्णा दूर करेगा तथा समुद्र देखनेसे केवलज्ञानी होगा। सिंहासन देखनेसे वह स्वर्गसे आकर अवतार ग्रहण करेगा,.नाग भवन देखनेसे वह अनेक तीर्थो का करने वाला होगा एवं रत्नराशि देखनेसे वह उत्तम गुणोंका धारक होगा तथा अग्निं देखनेसे कर्मों का विनाशक होगा । इस प्रकार पति द्वारा स्वप्नोंका हाल सुनकर महारानी की प्रसन्नता बहुत बढ़ गयी। वे जिनेन्द्र भगवानके अवतारकी सूचना पाकर अपने जीवनको सार्थक मानने लगी।
स्वप्नके आठवें दिन अर्थात् आषाढ़ शुक्ल षष्ठोके दिन प्राणत स्वर्गके पुष्पक विमानके द्वारा आकर इन्द्रके जीवने महा. रानी त्रिशलाके मुखमें प्रवेश किया । उस समय इन्द्रादि देवोंके सिंहासन कंपित होगये। देवोंको अवधिज्ञानके द्वारा ज्ञात हो गया। वे सब वस्त्राभरण लेकर आये और माता की पूजा कर अपने स्थानको लौट गये। त्रिशला देवीने चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन शुभग्रह और शुभलग्नमें भगवान महावीर स्वामीको जन्म दिया। उस समय दिशायें निर्मल हो गयीं और वायु सुगन्धित बहने लगी। आकाशसे देवोंने पुष्पोंकी वर्षाकी और दुदुभी बजाई । जन्मके समय भी भगवानके महापुण्यके उदय होनेसे इन्द्रोंके सिंहासन कांप उठे। उन्होंने अवधिज्ञानसे जान लिया कि, भगवान महावीर स्वामीने जन्म ग्रहण किया। समस्त इन्द्र और चारों प्रकारके देव गाजे-बाजेके साथ कुण्डपुर में पधारे । राजमहलमें पहुंचकर देवोंने माताके समक्ष विराजमा.