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गौतम चरित्र। इन्द्रकी आज्ञा थी-भगवान महावीर स्वामींके जन्म कल्याणकके १५ मास पूर्वसे ही सिद्धार्थके घर रत्नोंकी वर्षा करनेकी । देव लोग इन्द्रकी आज्ञाका अक्षरशः पालन करते थे । अष्टादिक कन्यायें एवं और भी मनोहर देवियां राजमाताकी सेवामें तत्पर रहती थीं। एक दिन महाररानी त्रिशाला देवी कोमल सज्जा पर सोयी हुई थीं। उन्होंने पुत्रोत्पतिको सूचना देनेवाले सोलह स्वप्न देखे। ऐरावत हाथी, श्वेत बैल, गरजता हुआ सिंह, शुभ लक्ष्मी, भमरोंके कलरवसे सुशोभित दो पुष्प मालायें, पूर्ण चन्द्रमा, उदय होता हुआ सूर्य, सरोवरमें क्रीडारत दो मछलियां, सुवर्णके दो कलश, निर्मल सरोवर, तरंगयुत समुद्र, मनोहर सिंहासन, आकाशमें देवोंका विमान,सुन्दर नाग-भवन, कांतिपूर्ण रत्नोंकी राशि और विना धूम्रकी अग्नि । प्रातःकाल बाजोंके शब्द सुनकर महागनी उठी । वे पूर्ण शृंगार कर महा. राजके सिंहासन पर जा बैठीं । उन्होंने प्रसन्न वित्त होकर महा. राजसे रातके स्वप्न कह सुनाये । उत्तरमें महाराज सिद्धार्थ क्रम से स्वप्नोंके फल कहने लगे-ऐरावत हाथी देखनेका फल-वह पुत्र तीनों लोकोंका स्वामी होगा। वैल देखनेका फल-धर्म प्रचारक और सिंह देखनेका फल अद्भुत पराक्रमीहोगा । लक्ष्मी का फल यह होगा कि, देव लोग मेरु दण्ड पर्वत पर उसका अभिषेक करेंगे । मालाओंके देखनेका फल, उसे अत्यन्त यशस्वी होना चाहिए तथा चन्द्रमाका फल यह होगा कि वह मोहनीय कर्मोंका नाशक होगा। सूर्य के देखनेसे सत्पुरुषोंको धर्मोपदेश देनेवाला होगा। दो मछलियोंके देखनेका फल सुखी होगा और