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गौतम चरित्र। न भगवानको देखा और भक्तिपूर्वक उन्हें नमस्कार किया । उस समय इन्द्राणीने एक-मायावी चालक बनाकर माताके सामने रख दिया और उस बालकको उठाकर सौधर्म इन्द्रको सौंप दिया। सौधर्म इन्द्र भी उस बालकको ऐरावत हाथीपर विराजमान किया और आकाश मार्ग द्वारा चैत्यालयोंसे सुशोभित मेरु-पर्वत पर ले गया। देवोंने मंगल ध्वनि की, वाजे बजने लगे, किन्नर जातिके देव गाने लगे और देवांगनाओंने शृङ्गार दर्पण ताल आदि मंगल द्रव्य धारण किये । सब लोग मेरु पर्वतकी पांडुक शिला पर पहुंचे। वह शिला सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और आठ योजन ऊंची थी। उस पर. एक अत्यन्न मनोहर सिंहासन था। देवोंने उसी सिंहासन पर भगवानको आसीन किया और वे नम्रता और भक्तिपूर्वक उनका अभिषेकोत्सव करने लगे । इन्द्रादिक देवोंने मणि और सुवर्ण निर्मित एक हजार आठ कलशों द्वारा क्षीरोदधि समुद्रका जल लाकर भगवानका अभिषेक किया। इस अभिषेकले मेरु पर्वत तक कांप उठा, पर बालक भगवान निश्चल रूपसे बैठे रहे। उस समय देवोंने भगवानके स्वाभाविक बलका अनुमान लगा लिया। इसके पश्चात् देवोंने जन्म-मरणादि दुखोंकी निवृति करनेके लिए चन्दनादि आठ शुभद्रव्योंसे भगवानकी पूजाकी । भगवान जिनेन्द्रकी पूजा सूर्यकी प्रभाके समान धर्म प्रकाश करने वाली और पापांधकारका नाश करने वाली होती है। वह भव्य जीवरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करती है । देवोंने उस बालकका शुभ नाम वीर रखा। अप्सराय