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कहिये जैसा दिगम्बरी लोग उनकी उत्पत्तिके वाचत वास्तविक मार्गका छोड़ना बताते हैं श्वेताम्बरी लोग भी तो वही बात कहते हैं किजिनकल्प वास्तवमे सत्य है । परन्तु कालकी करालतासे उसका व्युच्छेद होगया है । इसलिये वह अब बहुत ही कठिन है। सो उसे हम लोग धारण नहीं कर सकते । यही पाठ शिवभूति से भी कहा गया था न ? तो अब पाठक ही विचारें कि कौन मत तो पुरातन है और फिसका ¡ कहना वास्तव में सत्पथका अनुशरण करता है ? यह बात तो हमने श्वेताम्बरी लोगों के ग्रन्थोंस ही बताई है और उन्हीं से दिगम्बर मत पुरातन सिद्ध होता है। जब स्वयं अपने शास्त्रों में ही ऐसी फया है जो स्वयं अपने को बाधित ठहराती है फिर भी भामहसे दूसरोंको बुरा भला कहना भूल है । जरा हमारे श्वेताम्बरी भाई यह बात सिद्ध तो फरें कि दिगम्बर मत आधुनिक है? वे ओर तो चाहे कुछ कहें परन्तु अपने ग्रन्थका किस रीति से समाधान करते हैं यही बात हमें देखना है ।
दिगम्बर लोग श्वेताम्बरियोंकी बाबत कहते हैं कि यह मत विक्रम सम्बत १३६ में निकला । उसी तरह श्वेताम्बर दिगम्बरियों के बाबत लिखते हैं कि - वि. सं. १३८ में दिगम्बर मत श्वेताम्बरसे निकला । दोनों मतकी कथा भी हम ऊपर उद्धृत कर आये हैं। सार किसके कहते है यह बात बुद्धिमान पाठक कथा पर ही से यद्यपि अच्छी तरह जान सकते हैं और इस हालत में यदि हम और प्रमाणोंको दिगम्बरियोंकी प्राचीनता सिद्ध करनेमें न दें तो भी हमारा काम अटका नहीं रहूंगा। क्योंकि जो बात खण्डन लिखनेवालोंकी लेखनी ही से ऐसी निकल जावे जिससे खण्डन तो दूर रहे और दूसरोंका मण्डन हो जाय तो उसे छोड़कर ऐसा कौन प्रबल प्रमाण हो सकता है जिससे कुछ उपयोग निकले ? श्वताम्बरी भाई यह न समझें कि इस लेखसे हम और प्रमाण देनेके लिये निर्बल हों। हम अपनी और से तो जहां तक हो सकेगा दिगम्बर धर्मके प्राचीन बतानेमें प्रयत्न करेंगे ही। परन्तु पहले पाठकों को यह तो समझादें कि दिगम्बर धर्म श्वेताम्बरले प्राचीन । वह भी श्वेताम्बरके प्रन्थोंसे ! अस्तु, अव हम उन प्रमाणोंको भी उप