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________________ स्थित करते हैं जिनसे जैनियोंका कोई सम्बन्ध नहीं है । और उन्हसि यह भी सिद्ध करेंगे कि दिगम्बर धर्म पहछेका है। श्वेताम्बरोंके ग्रन्थों में यह लिखा हुआ मिलता है कि दिगम्बर धर्म विक्रमकी दूसरी शताब्दिमें स्थवीरपुरसे शिवमूषिके द्वारा निकला है। अस्तु, श्वेताम्बर भाइयोंका इस भूल पर चाहे जैसा अन्ध श्रद्धान हो! परन्तु इतिहासके जानने वाले यह बात कमी खीकार नहीं करेंगे। प्राचीन इतिहासके देखने पर यह श्रद्धा नहीं होती कि-इस कथनका पाया कितना गहरा और सुहद होगा? हम अपने प्राचीनत्वके सिद्ध करनेके पहले यह बतला देना बहुत समुचित समझते हैं किदिगम्बर साधु लोग धन वन आदि कुछ भी परिग्रह अपने पास नहीं रखते है। अर्थात् थोड़े अक्षरों में यो कहिये कि वे दिशारूप पलके धारण करने वाले हैं इसीलिये उन्हें दिगम्बर (नम) साधु कहते हैं। जैसा कि-श्रीभगवत्समन्तभद्रने साधुओंका लक्षण अपने रत्नकरण्डउपासकाचारमें लिखा है विषयाशावशातीतो निरारम्भोभरिग्रहः । शानध्यानतपोरक्तस्तपखी स प्रशस्यते ॥ यह दिगम्बरियोंके साधुओंका लक्षण है। और श्वेताम्बरियोंके साधु लोग वन वगेरह रखते हैं। इसलिये थे श्वेताम्बर कहे जाते हैं। अथवा हम यह व्याख्या न मी करें तौमी उनके नाम मात्रसे यह बात हो जाता है कि वे श्वेत वसके धारण करने वाले हैं। इससे यह सिद्ध हो गया कि निर्मन्थ साधुओंके उपासक दिगम्बर लोग हैं और शेव वन धारक साधुओंके उपासक श्वेताम्बरी लोग । अब विचार यह करना है कि-दिगम्बर मत जब प्राचीन बताया जाता है तो ऐसे कौन प्रमाण है जिनसे सर्व साधारण यह समझ जाय कि दिगम्बर मत पाखवमें पुरावन है। , हम यह बात ऊपर ही सिद्धकर चुके हैं कि दिगम्बर लोग नाम साधु क्या नाम देवके उपासक हैं। वो अब देखिये कि-वराहमिहिर जो
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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