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________________ (९) | यही दोनों मनाके शासका सिद्धान्त है। इसमें किसन्न फाइना सत्य है तथा कान पुरातन है यह जरा पर्यालाचनस आगे नल कर । अवगत होगा । दिगम्बरियांकी उत्पत्ति यावत वाम्बर लोगोया । कहना है कि ये लोग विक्रमको री शताब्दिमें हुये हैं । अग्नु, यदि । थोड़ी देर के लिये यही श्रद्धान फर लिया आप तौभी उसमें यह मन्दह कम निराकृत हो सकेगा ? श्वेताम्बर भाइयोंक पास अपने अन्योंक लिन्ने हुये प्रमाणको छोड़कर और ऐसा कौन मुस्ट प्रमाण है जिसस सर्व साधारणमें यह विश्वास होताय कि पथार्थ दिगम्बर मतका समावि. भाव विक्रमकी दूसरी शताब्दिमें हुआ ई? क्योंकि प्रतिवादीका संशय दूर करने के लिये ऐसे प्रमाणको बड़ी भारी करता है। हमने दिगम्बर मतके खण्डनमें श्वेताम्बर सम्प्रदायके आधुनिक विद्वानोंकी बनाई हुई कितनी पुस्तकें देखीं परन्तु आजवक किसी विद्वानने प्रबल प्रमाणके द्वारा यह नहीं खुलासा किया-जसा वताम्बर शात्रोंमें दिगम्बरोंका रख किया गया है। इसलिये यातो इस विषयको सिद्ध करना चाहिये अन्यथा हरिभद्र सूरिके इन वचनोंका पालन करना चाहिये कि पक्षपाती न मे वीरे न वेषः कापिलादिषु । मुक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ केवल कथन मात्रसे निष्पक्षपाती होनेकी हींग मारनेको कोई बुद्धिमान भला नहीं कहता । जैसा कहना वसा परिपालन भी करना चाहिये । उपदेश केवल दूसरोक लिय ही नहीं होता किन्तु स्वतः भी उसपर लक्ष्य देना चाहिये। ___ हम यह बात तो आगे चलकर प्रतावंग कि पुराना मन कान है? और कौन यथार्थ है ? इस समय श्वेताम्बरियॉन जो दिगन्दरियोंकी धावत कथा लिखी है उसीकी ठीक २ समीक्षा करते हैं श्वेताम्बारियोंने यह बात तो अपने आप स्वीकार की है कि शिव. भूतिने जिस मतका आदर किया था वह जिनकल्प है और इस वाम इसी कारणसे ग्रहण किया था कि और साधुलोग जो जिनकल छोड़े हुये बैठे थे पह उचित नहीं था। सो उसका प्रचार हो। इससे
SR No.009546
Book TitleBhadrabahu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherJain Bharti Bhavan Banaras
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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