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बनावी छे. एमां चौलुक्य वंश अने वस्तुपालना वंशनुं टुंकुं वर्णन आपी, ए मंत्रीये जे जे ठेकाणे मुख्य मुख्य धर्मस्थानो के देवस्थानो कराव्यां अगर समराव्यां तेनी लंबाणथी यादी आपी छे. प्रशस्तिकार पोते ज ए यादीने बहु टुंकी जणावे छे, छतां ए दानवीरे गुजरातनी पुण्यभूमिने भव्य स्थापत्यनी विभूतिथी अलंकृत करवा माटे जे अगणित लक्ष्मी खर्ची छे तेनी केटलीक सारी कल्पना ए प्रशस्तिना पाठथी थई शके छे.
ए ज आचार्यनी रचेली ३९ पद्योनी एक बीजी नानी सरखी प्रशस्ति, तथा एमना गुरु आचार्य नरचंद्रसूरिनी करेली २६ पद्योवाळी एक बीजी प्रशस्ति, तेम ज 'सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी'ना कर्ता उदयप्रभसूरिनी रचेली ३३ पद्योवाळी वस्तुपालस्तुति वगेरे केटलीक अन्य कृतियो पण मने मळी छे. (औ) विजयसेनसूरिकृत रेवंतगिरिरासु
वस्तुपालना इतिहास माटेनी उपयोगितामां छेल्ली पण भाषाविकासना अभ्यास माटेनी योग्यतानी दृष्टिये एक पहेली कक्षानी कृति तरीके विजयसेनसूरिना बनावेला गुजराती 'रेवंतगिरिरासुनी नोंध पण आ साधनसामग्री भेगी लेवी जोईए. ए विजयसेनसूरि वस्तुपालतेजःपालना मुख्य धर्माचार्य. एमना उपदेशने अनुसरीने ज ए बंने भाईयोए तेटलां बधां सुकतनां कार्यो कर्यां हता. एमना कथनने मान आपीने ज वस्तुपाले सौथी पहेलो गिरनारनी यात्रा माटेनो मोटो संघ काढ्यो. ए संघमां स्त्रीवर्गना गावा माटे, गिरनार वगेरेनुं सुंदर वर्णन गुंथी, ए रासनी रचना करवामां आवी छे. एमां विशेष ऐतिहासिक सामग्री जडती नथी छतां एनुं ऐतिहासिक मूल्य आ दृष्टिये विशिष्ट छ ज अने गुजराती भाषानी एक आद्यकालीन कृति तरीके तो एनी विशिष्टता सर्वोपरि गणी शकाय. (अं) जिनभद्रकृत नानाप्रबंधावलि
वस्तुपालना पुत्र जयन्तसिंहना भणवा माटे संवत् १२९०मां, उपर्युक्त उदयप्रभसूरिना शिष्य जिनभद्रे अनेक कथाओना संग्रहवाळी एक ग्रंथरचना करी छे जे खंडितरूपमा मने पाटणना भंडारमाथी मळी आवी छे. एमां पृथ्वीराज चाहमान, कनोजना जयन्तचंद्र, अने नाडोलना लाखण राव चोहाण वगेरेने लगता केटलाक ऐतिहासिक प्रबंधो पण आपेला छे. 'प्रबंधचिंतामणि'ना कर्तानी सामे आ प्रबंधावलि होय एम लागे छे, एटलुं ज नहिं पण केटलाक प्रबंधो तो तेमणे एमांथी ज नकल करी लीधेला होय तेवू पण स्पष्ट भासे छे. चंद बरदाइना नामे चढेला अने हिंदी भाषाना आद्य काव्य तरीके ओळखाता पृथ्वीराज रासोना कर्तृत्व उपर केटलोक नवीन प्रकाश आ प्रबंधावलि उपरथी पडे छे. ए ज संग्रहमां, घणुं करीने पाछळथी कोईये वस्तुपालना जीवनचरित्रने लगती पण केटलीक विशिष्ट हकीकत आपेली छे जे ऐतिहासिक दृष्टिये घणी महत्त्वनी छे.'' (उक्त निबन्ध, पृ. १७-२२)