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वस्तुपालनी कीतिकथा कथतुं आ बधुं (उपर जणावेलु) काव्यात्मक तथा प्रशस्त्यात्मक जे साहित्य छे तेने जो एक प्रकीर्ण संग्रहस्वरूप ग्रन्थमा संकलित करी प्रसिद्ध करवामां आवे तो ते इतिहासना अभ्यासियोने बहु उपयोगी थाय तेम छे, तेथी ए दृष्टिये प्रस्तुत ग्रन्थना परिशिष्ट तरीके ते बधा साहित्यने पण एक जुदा (बीजा) भागरूपे प्रकट करवानो मारो विचार थयो अने ते में सुहन्मुनिवर श्री पुण्यविजयजीने निवेदन कर्यो. तेमने पण ए विचार बहु उपयुक्त जणायो अने तेथी तेमणे पोते ज ए बधी प्रशस्त्यादि कृतियो, पण संशोधन अने संपादन कार्य सहर्ष स्वीकारी लई पूर्ण कर्यु छे. हवे पछी थोडा ज समयमा ए बीजो भाग पण वाचकोना करकमळमां उपस्थित थशे. ४. ग्रन्थकारनो थोडोक परिचय
ग्रन्थकार उदयप्रभसूरि एक समर्थ विद्वान् अने प्रतिभासंपन्न सारा कवि हता, ए तेमनी करेली रचनाओना अवलोकन उपरथी स्पष्ट जणाय छे. प्रस्तुत ग्रन्थमां पण तेमनी प्रासादिक भाषाप्रभुता अने ओजःपूर्ण आलंकारिक रचनाशैलीनो सरस परिचय मळे छे. एमनो एक बीजो मोटो ग्रन्थ ते 'उपदेशमाला' उपर 'कर्णिका' नामनी विस्तृत वृत्ति छे. ज्योतिषशास्त्र विषयतेमनुं पांडित्य पण बहु उच्च कोटिनु हतुं तेनी प्रतीति तेमना रचेला अने जैन विद्वानोमां बहु प्रिय अने प्रतिष्ठित मनाता 'आरंभसिद्धि' नामना ग्रन्थ उपरथी थाय छे.
ए आचार्य, महामात्य वस्तुपालना कुलना विशिष्ट धर्मगुरु हता. एमना गुरु विजयसेनसूरि अने प्रगुरु हरिभद्रसूरि, तत्कालीन अणहिलपुरना जैन समाजना एक प्रमुख आचार्य गणाता. पाटणना पंचासर पार्श्वनाथना राष्ट्रप्रसिद्ध अने राज्यप्रतिष्ठित जैन चैत्यना ए अधिनायको हता. उदयप्रभसूरि अने तेमना गुरु विजयसेनसूरि वस्तुपालना कुटुंबना अत्यंत श्रद्धाभाजन आप्त साधुपुरुष जेवा हता. उदयप्रभसूरिना विद्याध्ययनमां वस्तुपाले घणी घणी रीते सहायता आपेली होय एम जणाय छे. 'पुरातनप्रबन्धसंग्रह'१ नामना ग्रन्थमां संगृहीत 'वस्तुपालतेजःपालप्रबन्ध'मां (पृ० ६४) जणाव्युं छे के-वस्तुपाले उदयप्रभसूरिना विद्याध्ययन अर्थे, ७०० योजनना विस्तारवाळा आ देशना कोई पण भागमा रहेला समर्थ विद्वानोने बोलावी बोलावीने एकत्र कर्या हता अने तेमनी पासे उदयप्रभसूरिनुं विद्याध्यनयन कराव्यु हतुं. वगेरे. आ उपरथी ए पण जणाय छे के प्राचीन समयमां जैन साधु-यतिजनोना विद्याध्ययन माटे श्रावकवर्ग केटली काळजी लेतो हतो अने केवा प्रकारनी साधनसामग्रीनी योजना करतो हतो.
ए प्रबन्धमां उदयप्रभसूरिनी विद्याध्ययन विषेनी उत्कट अभिरुचिनो एक प्रसंग आलेखवामां आव्यो छे जे बहु ज रमुज भरेलो अने रसोत्पादक छे. ५. उदयप्रभसूरिनुं चाचरीयाकनी कथा- श्रवण करवा जवू
पाटणमां( के पछी धोलकामां ?) एक वखत कोई महाविद्वान् ब्राह्मण पण्डित, जे चाचर
१. सिंघी जैन ग्रन्थमालाना द्वितीय मणि तरीके प्रकाशित थएल, प्रस्तुत लेखक संपादित.