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तरीके संबोधवामां आवे छे, तेना मदनुं मर्दन करी गुजरातनी सत्तानुं मुख उज्ज्वळ कर्यु. ए आखी घटनाने मूळ वस्तु तरीके गोठवी, भरुचना जैन विद्वान् आचार्य जयसिंहसूरिए 'हमीरमदमर्दन' नामनुं पंचांकी नाटक बनाव्युं. ए नाटकनी रचना करवामां मुख्य प्रेरणा, वस्तुपालनो पुत्र जयंतसिंह, जे ते वखते खंभातनो सूबो हतो तेनी हती, अने तेना ज प्रमुखत्व नीचे भीमेश्वरदेवना उत्सवप्रसंगे खंभातमां ते भजववामां आव्युं हतुं. ए रीते ए एक ऐतिहासिक नाटक छे, जेने भारतीय नाटकसाहित्यमां अत्यंत विरल कृतियोमांनी एक कृति तरीके गणी शकाय वस्तुपालना वखतनी राजकारण सूचवती जे हकीकतो आ नाटकमां गुंथेली छे ते बीजी कोई कृतियोमां नथी मळती तेथी ए इतिहास माटे, आ घणो उपयोगी अने महत्त्वनो प्रबंध छे. केटलाक विद्वानोए, एमां आपेली हकीकतोने, वधारे अतिशयोक्ति भरेली जमावी छे पण ते बराबर नथी. मारा मते एनुं ऐतिहासिक मूल्य वधारे ऊंचा प्रकारनुं छे.
वस्तुपालप्रशस्तियो
उपर जे वस्तुपाल विषेनां काव्यो वगेरेनो परिचय आप्यो छे ते उपरांत ए भाग्यवान् पुरुषनी कीर्ति कथनारी बीजी केटलीक टुंकी टुंकी कृतियो मळे छे, जे प्रशस्तियो कहेवाय छे. एव प्रशस्तियोमांथी केटलीक आ प्रमाणे छे
(ए) उदयप्रभसूरिकृति सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी
उपर वर्णवेल धर्माभ्युदय काव्यना कर्ता उदयप्रभसूरिये 'सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी' नामनी १७९ पद्योनी एक संस्कृत प्रशस्ति रची छे. एमां अरिसिंहना 'सुकृतसंकीर्तन' नामना काव्यमां जेवी हकीकत छे तेवी ज हकीकत संक्षिप्त रीते वर्णवामां आवी छे. अणहिलपुरना चावडा वंशनी हकीकत पण एमां, उक्त काव्यनी जेम, आपवामां आवी छे अने अंते वस्तुपाले करावेलां केटलांक धर्मस्थानोनी यादी पण आपी छे. कदाचित् शत्रुंजय पर्वत उपरना आदिनाथना मंदिरमां कोक ठेकाणे आ प्रशस्ति शिलापट्टपर कोतरीने मूकवा माटे बनाववामां आवी होय. (ऐ) जयसिंहसूरिकृत वस्तुपाल - तेज: पालप्रशस्ति
जेमणे ‘हमीरमदमर्दन' नामनुं नाटक रच्युं तेज जयसिंहसूरिये 'वस्तुपाल - तेजः पालप्रशस्ति' नामे एक ९९ पद्योनी टुंकी रचना करी छे एमां अणहिलपुरना चौलुक्य वंशनुं वस्तुपालतेजपालना पूर्वजोनुं अने तेमणे करावेलां केटलांक धर्मस्थानोनुं वर्णन छे. तेजपाल ज्यारे भरुच गयो त्यारे त्यां तेणे जयसिंहसूरिनी प्रेरणाथी, त्यांना सुप्रसिद्ध पुरातन 'शकुनिकाविहार' नामे मुनिसुव्रतजिनचैत्यना शिखरो उपर सुवर्णकलश अने ध्वजादंड वगेरे चढावी ए मंदिरने खूब अलंकृत बनाव्युं हतुं, तेथी तेनी प्रशस्ति तरीके आ कृति बनाववामां आवी छे. (ओ) नरेन्द्रप्रभसूरिविरचित मंत्रीश्वरवस्तुपालप्रशस्ति
वस्तुपालना मातृपक्षीय धर्मगुरु नरेन्द्रप्रभसूरिये १०४ श्लोकोनी एक 'वस्तुपालप्रशस्ति'