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[चान्तवर्गे
विश्वलोचनकोशःअथ ङान्तवर्गः।
डैकम् । भैरवे विषये डः स्यात् ।। इति विश्वलोचने डान्तवर्गः ॥
अथ चान्तवर्गः।
चैकम् । चस्तु तस्करचन्द्रयोः ॥
चद्वितीयम् । अर्चा पूजाप्रतिमयोरुच्चो महति चोन्नते । कचः केशेऽपि हीबेरे कचो गीष्पतिनन्दने ॥ १ ॥ कचः शुष्कत्रणे बन्धे करिण्यां तु कचा स्त्रियाम् । काचस्तु स्यान्मणौ शिक्ये नेत्ररोगे मृदन्तरे ॥ २ ॥ काञ्ची तु मेखलादाम्नि नीवृदन्तरगुञ्जयोः । कूर्चमस्त्री भ्रुवोर्मध्ये शोथश्मश्रुविकत्थने ॥ ३ ॥ ___अथ ङान्तवर्ग। कच-केश (बाल ), नेत्रबाला-औ
षधि, बृहस्पतिका पुत्र, ॥१॥ ङ-भैरव, विषय, (भोग) (पुं०) सूखा व्रण (घाव ), बंध, (पुं०) ___ इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटी- कचा-हथनी, ( स्त्री.) कामें डान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥
काच-मणि, छीका, नेत्ररोग, मि
हीका भेद, (पुं० ) ॥ २ ॥ अथ चान्तवर्ग। चैक।
कांची-करधनीकी लड़ी, कांची-पुरी, च-चोर, चन्द्रमा, (पुं०)
गुंजा ( चिरमठी ) ( स्त्री०) चद्वितीय। | कूर्च-भ्रुकुटियोंके बीचका भाग, अर्चा-पूजा, प्रतिमा ( मूर्ति ) (स्त्री०) सोजा, दाढी मूछ, बकवाद, उच्च-बड़ा, ऊँचा, (पुं०)
(न०)॥३॥
"Aho Shrutgyanam"