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________________ घतृतीयम् । भाषाटीकासमेतः। घतृतीयम् । अमोघः सफलेऽमोघा ख्याता पथ्याविडङ्गयोः । उल्लाघो नीरुजे दक्षे शुचौ हर्षयुते त्रिषु ॥ ७ ॥ काचिघः काञ्चने पुंसि मूषके स्वच्छमण्डपे । निदाघ उष्णकाले स्यात्तापेऽपि खेदवारिणि ॥ ८ ॥ परिघो मुद्गरे योगभेदे खकुलघातयोः । पलिघः काचकलशे घटप्राकारगोपुरे ॥ ९ ॥ प्रतिघस्तु भवेत्क्रोधे प्रतिघातेऽप्यथ त्रिषु । महार्यः स्यान्महामूल्याऽनर्घयोर्लावके पुमान् । सवौंघो गुरुवेगार्थसर्वसन्नहनार्थयोः ॥ १० ॥ इति विश्वलोचने घान्तवर्गः ॥ घतृतीय। पलिघ-काचकलश, घट, किला, अमोघ-सफल, (त्रि.) पुरका दरवाजा, (पुं० ) ॥ ९ ॥ अमोघा-हरड़, बायविडंग, (स्त्री०) प्रतिघ-क्रोध, प्रतिघात ( बदलेसेउल्लाघ-रोगसे छुटाहुवा,चतुर, पवित्र, | मारना ) (पु.) आनंदवाला, ( त्रि०)॥७॥ महाघ-बहुतमोलवाली वस्तु, अमूल्य काचिघ-सुवर्ण, ( पुं० ) मँसा (जिसकी कीमत न होसके ), (चूहा), स्वच्छमंडप (पुं०) (त्रि.) लवा-पक्षी, (पुं०) निदाघ-ग्रीष्म ऋतु, ताप ( गरमी), सवाघ-बहुत बेग, सबतरफसे कवच पसीनाका पानी, (पुं० )॥ ८॥ धारण, (पुं० ॥ १० ॥ परिघ-लोहेका मदर. विष्कंभ आदि | इसप्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें . योगोंमें एक योग, अपना या कुलका घान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥ नाश, (पुं०) "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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