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________________ विश्वलोचनकोशः- [अव्ययवर्गखलु स्याद्वाक्यभूषायां खलु वीप्सानिषेधयोः । निश्चिते सान्त्वने मौने जिज्ञासादौ खलु स्मृतम् ॥ ६९ ॥ व० अव व्याप्तौ परिभवे वियोगालम्बशुद्धिषु । ईषदर्थेऽपि विज्ञानेप्येवौपम्येऽवधारणे ॥ ७० ॥ वस्तु युष्माकमित्यर्थे वर्तते भेदने तु वि। वि स्यादतीते नानार्थे श्रेष्ठे विस्तु खगे पुमान् ॥ ७१ ॥ ष० उषाऽसङ्ख्यं ससङ्ख्यं च निशान्तनिशयोर्मतम् । दोषा रात्रिमुखे रात्रावत्रानव्ययमप्यसौ ॥ ७२ ॥ निकषा त्वन्तिके मध्ये रक्षोमातर्यनव्ययम् । विभाषा तु स्त्रियां कापि विकल्पार्थे समुच्चये ॥ ७३ ॥ स० अग्रतः प्रथमेऽग्रे स्यादञ्जसा तत्त्वपूर्णयोः ।। खलु-वाक्यभूषण, वीप्सा, (दो या प० तीन बार कहना), निषेध, निश्चित, उषा-प्रातःकाल, रात्रि ( अ० स्त्री०) सावन, मान, जाननका इच्छा दोषा-सायं(संध्या)काल, रात्रि आदि (अ० ) ॥ ६९ ॥ (अ. स्त्री०) ॥ ७२ ॥ व० अव-व्याप्ति, तिरस्कार, वियोग निकषा-समीप, मध्य (अ० । आलम्बन, शुद्धि, ईषत् ( थोड़ा): निकषा-राक्षसोंकी माता ( स्त्री. ) अर्थ, जानना ( अ०) । विभाषा-विकल्प अर्थ, समुच्चय (इएव-सदृशता, निश्चय ( अ० ॥७॥। कहा) करना (अ० स्त्री०)॥७३॥ वस्-'तुम्हारा' यह अर्थ, (अ.) ! स० वि-भेदन, बदीतहुआ, नाना अर्थ, अग्रतस्-प्रथम, अग्र ( अ०) श्रेष्ठ (अ.) वि-पक्षी (पुं०)॥७१॥ अञ्जसा-तत्त्व, शीघ्रता (अ.) "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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