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________________ लकारान्तम् । ] भाषाटीकासमेतः । अन्तः प्रान्तार्थमध्याथस्वीकारार्थे तु वर्जने । उरर्युरुरीवदूरी विस्तारेऽङ्गीकृतौ त्रयम् ॥ ६३ ॥ दुर्निषेधेऽपि कष्टेsपि गताद्यर्थाऽप्रकर्षयोः । निर्निःशेषे निषेधे च क्रान्ताद्यर्थे च निश्चये ॥ ६४ ॥ परा गतौ वधे प्रातिलोम्यप्राधान्यघर्षणे । आभिमुख्ये विमोक्षे च भृशार्थे विक्रमेऽपि च ॥ ६५ ॥ परि स्यात्सर्वतोभावे वीप्सायां लक्षणादिषु । आलिङ्गने निरसने व्यापने व्याधिशोकयोः ॥ ६६ ॥ पूजोपरमभूषासु दोषाख्यानेऽपि वर्जने । पुनर्भिदाऽप्रथमयोः पुरा भाविपुराणयोः ॥ ६७ ॥ प्रबन्धे निकटेऽतीते स्वः स्वर्गपरलोकयोः । ल० किल त्वरुचौ वार्त्तायां सम्भाव्यानुनयार्थयोः ॥ ६८ ॥ अन्तर् - समीप अर्थ, मध्य अर्थ, अंगीकार अर्थ, वर्जन अर्थ ( अ० > उररी १, उरुरी २, ऊरी ३, वि. स्तार, अंगीकार, ( अ० ) ॥६३॥ दुर्- निषेध, कष्ट, गतआदि अर्थ, अप्रकर्ष (अ० > निर्-निःशेष, निषेध, कान्तआदि | (उल्लंघन आदि) अर्थ, निश्चय (अ० ) ।। ६४ ।। T ४१७ परि चारों तरफ, दो बार, लक्षण आदि, मिलना, दूर करना, व्याधि, शोक, ॥ ६६ ॥ पूजा, उपशम ( शांति ), आभूषण, दोषकथन, बर्जना ( अ० o) पुनर्-भेद, दूसरी बार (अ० पुरा - भावि ( होनेवाला ), पुराना, ॥ ६७ ॥ प्रबंध, समीप, बदीतहुवा (अ० ) >) परा-गमन, वध, प्रातिलोम्य (उलटा | स्वर्-स्वर्ग, परलोक ( अ० ) पन), प्राधान्य, धर्षण ( तिरस्कार), ल० संमुख करना, छुटना, अति अर्थ, किल - अरुचि, वार्ता, संभावना अर्थ, पराक्रम ( अ० ० ) ॥ ६५ ॥ नम्रता अर्थ ( अ० ) ॥ ६८ ॥ २७ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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