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विश्वलोचनकोश:
कुल्माषो यवके पुंसि चणके यवषष्टके | कुल्माषं काञ्जिके क्लीबं गण्डूषः प्रसृतोन्मिते ॥ २१ ॥ गण्डूषो मुखपूरेऽपि करिहस्ताङ्गुलावपि । जिगीषा जेतुमिच्छायां व्यवसाय प्रकर्षयोः ॥ २२ ॥ तरीषः शोभनाकारे भेलेब्धिव्यवसाययोः । ताविषस्तु सरिन्नाथे कनकवर्गयोरपि ॥ २३ ॥ नहुषो राजभेदे स्यान्नहुषो भुजगान्तरे । निकषः कषपाषाणे निकषा यातुमातरि ॥ २४ ॥
निमेषनिमिषौ कालभेदे नेत्रनिमीलने | परुषं कर्बुरे रूक्षे त्रिषु निष्ठुरवाच्यपि ॥ २५ ॥
[ षान्तवर्गे---
पुरुषः पुन्नागमातङ्गे माधवे परमात्मनि । पौरुषं तेजसि क्लीबं पुंसो भावेऽपि कर्म्मणि ॥ २६ ॥
कुल्माष - जव, चना, आधा सीजाहुवा | नहुष - राजा नहुष, सर्पभेद ( पुं० ) धान्य ( पुं० )
कुल्माष - काँजी ( न०
निकष- कसौटी पत्थर ( पुं० ) निकषा - राक्षसोंकी माता (स्त्री) २४ निमेष निमिष - कालभेद, नेत्रोंका
गण्डूष- एक अंजलि प्रमाण, ॥ २१ ॥ मुखका जल आदिसे पूरना, हाथीकी सूँड और अंगुली ( पुं० ) जिगीषा - जीतने की इच्छा, वीर्याति. ! परुष - कबरा रंग, रूखा, ( न० ) कठोर बोलनेवाला (त्रि०) ॥ २५ ॥
मीना ( पुं० )
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शय, उच्चपन ( स्त्री० ) ॥ २२ ॥
तरीष- सुंदर आकार, छोटी नौका, | पुरुष - पुंनाग - वृक्ष, हस्ती, विष्णु, परसमुद्र, वीर्यातिशय ( पुं० ) मात्मा (पुं० ) ताविष- समुद्र, सुवर्ण, स्वर्ग ( पुं० ) | पौरुष - तेज, पुरुषका भाव और कर्म ( न० ) ॥ २६ ॥
॥ २३ ॥
"Aho Shrutgyanam"