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________________ ततृतीयम् । ] भाषाटीकासमेतः । विनाशदोष कृच्छ्रेषु दण्डे तु मतमव्ययम् । पर्याप्तस्तु प्रकामे स्यात्प्राप्तौ च परिरक्षणे ॥ १२८ ॥ पर्यस्तः पतितक्षिप्त निहतेषु त्रिषु त्रिषु । पलितं केशपांडुत्वे पङ्के तापेऽपि शैलजे ॥ १२९ ॥ पक्षतिः पक्षमूले स्यात्प्रतिपद्यपि पक्षतिः । पार्वती द्रौपदी दुर्गा जीवन्ती शल्लकीद्रुमे ॥ १३० ॥ पिण्डितो गणिते सान्द्रे पित्सन् पातेऽपि पक्षिणि । पिशिता मासिकायां स्यात्पिशितं पलले मतम् ॥ १३१ ॥ पीडितं करणे स्त्रीणां यन्त्रिते बाधितेऽपि च । पुटितं स्यात्करपुटे प्रखतिस्स्यूतपोटिते ॥ १३२ ॥ पृषतोऽपि पृषद्विन्दौ मृगे तु पृषतः पृषन् । स्याहु:र खरेऽहितेऽप्येवं श्वेतबिन्दुयुतेऽन्यवत् ॥ १३३ ॥ पर्याप्तं विनाश, दोष, कुच्छ्र, (कष्ट) दंड, (अव्यय) पर्याप्ति - प्रकाम (अति इच्छा), प्राप्ति, अच्छी रक्षा, (स्त्री० ) ॥ १२८ ॥ पर्यस्त - पड़ाहुवा, फेंकाहुवा, माराहुवा, (त्रि०) पलित - केशों की सफेदी, कींच, ताप, शिलाजीत ( न ० ) ॥ १२९ ॥ पक्षति - पक्षीकी मूल प्रतिपदा तिथि, ( स्त्री० ) पार्वती - द्रौपदी, दुर्गा, हरड वृक्ष, शालई - वृक्ष, ( स्त्री० ) ॥ १३० ॥ पिंडित-गणित कियाहुवा, इकट्ठा कियाहुवा, (पुं० ) १४१ पित्स (स् ) न् - पडना, पक्षी, ( न० पुं० ) पिशिता- जटामांसी- औषधि, (स्त्री०) पिशित - मांस, ( न० ) ॥ १३१ ॥ पीडित स्त्रियोंका आभूषण, वशमें कियाहुवा, पीडा कियाहुवा (त्रि ० ) पुटित - हाथका पुट (न० ) प्रसृति - आधी अंजलि, थैली, पुट कियाहुवा, (स्त्री० ) ॥ १३२ ॥ पृषत - (पुं० ) पृषत् - ( न० ) जल आदिकी बूँद, पृषत - पृषत्, हिरण, (पुं० ) बुरे शब्दवाला, शत्रु, सफेद बुंदकीवाला (त्रि०) ॥१३३॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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