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सलराधिकार:
परं सर्वत्र विग्रहः, नगरे वासः, ग्राममुझसनं रोगपीडा राजा सुस्थः प्रजासुखमन्नसमता गुर्जरदेशे समर्घता, सिन्धुदेशाद् धान्यागमनं, चैत्रे धान्यमहर्षता प्रजापीडा, वैशाखादिमासत्रयेऽन्नमहर्यता प्रजाक्षयोऽश्वपीडा, आषाढे पावणेऽरूपमेघः, धान्ये नतुर्गुणो लाभः, भाद्रे खण्डवृष्टिः, आश्विने समता, कार्तिकादिमासपञ्चके विग्रहपीडा, अन्नमहर्थना चतुष्पदरोगः ॥५१॥ कालवत्सरे केतुः स्वामी, अल्पमेघो देश उसनम्, अल्पव्यापारः राजविग्रहः, चैत्रे वैशाखे चात्यरिष्टमुत्तरापथे देशभंगा, ज्येष्ठे धान्यसंग्रहः, धान्ये षड्गुणो लाभः, आषाढेऽल्पमेघः, लोके दुःखं, मार्गविषमाः, श्रावणे महान् मेघोऽन्नसमता, भाद्रपदे खण्डवृष्टिः, धान्यदुभिमुत्पात:, आश्विने रोगशीतलादिविकारः, धान्य कादिया ७५ नाणकैः कणकलशिका एका लभ्यते, सवरसमहर्चता सर्वधा
और पूर्वदेशमें दुर्भिक्ष, अनभार तेज, सब धातु सस्ती, सब जगह विग्रह, नगरमें निवास, गांवका विनाश, रोगपीडा, राजा मुखी, प्रजा सुखी, अनभाव सम, गुजरात देशमें सस्ता, सिंधु देशसे धान्यका आगमन, चैत्रमें धान्य तेज, प्रजापीडा, वैशाग्वादि तीन मास अन्न तेज, प्रजाका क्षय, घोडाको पीडा, आषाढ श्रावणमें थोड़ी वर्मा, धान्यसे चोगुना लाभ, भाद्रपद में खगडवृष्टि आश्विन में सम, कार्ति। ।दि पांच मारल विग्रह और पीडा, अम्न तेज, पशुओंमें गेग ॥ ५.१ ॥ कालचर्पका स्वामी केतु, घोडी वर्षा, देशका. उजाड़, थोड़ा व्यापार, राजविग्रह, क्षेत्र वैशाखमै अधिक दुःख, उत्तरमें देइ.भग, ज्येष्ठमें धान्यका संग्रह करनेसे छगुना लाभ, आपादमें थोड़ी वर्षा, लोगों में दुःख, मार्ग विषम, श्रावण में महामेध, अन्नभाव सम भादोंमें खण्डवृष्टि, धान्यकी दुर्भिक्षता, उत्पात, आश्विन में रोग शीतला मादिका विकार, अन्न ५५ फदियाका एक कलशी बिफें, सब रस तेज,
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