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मेघमहोदये न्ति, वैशाखे ज्येष्ठे तैलं महर्घ, ज्येष्ठे आषाढे गुडखण्डाद्रच्यं महर्ष, श्रावणेऽल्पमेघः, अन्नमहर्घता, भाद्रपदे महामेघः, अमसमर्घता, आश्विने समता, कार्तिके रोगार्तिः, मागशीर्षा, दिचत्वारोमासाधान्यसमर्घता, राजा सुखी, प्रजाराजमान्या, फाल्गुने समर्धता, वृक्षा नवपल्लवाः,मार्गसुखं सुभिक्षम् ॥४९॥ नलसंवत्सरे शनिः स्वामी, अल्पमेघः परं समर्घता, चैत्रे रो. गपीडा, वार्दलं बहुलं, वायुः प्रबलः, वैशाखेऽरिष्टमन्नसंग्रह कार्य:; ज्येष्ठे राज्ञां परस्परं विग्रहो लोकसुखी, मार्गवैषम्य क्वचिदाषाढ़े श्रावणे चाल्पमेघः,घान्ये त्रिगुणश्चतुगुणो लाम: भाद्रपदे खण्डवृष्टि भिक्षधान्यसंग्रहः आषाढे कार्यः, आश्विने विक्रिया, मागशीर्षादिमासनयेऽन्नसमता,फाल्गुने रोगवा. लकः, तस्करभयः,उत्तरदेशे दुष्कालः, पूर्वस्यांसुभिक्षम्।।५०॥ पिङ्गले राहुः स्वामी, उच्चमुलतान नागपुरमरुदेशे दिल्लीमण्डलेषु मथुरायां पूर्वदेशेषु दुर्भिक्षमन्नं मधे सर्वधातुसमर्घता शक्कर तेज, श्रावणमें थोड़ी वर्षा, अनाजका भाव तेज, भाद्रपदमें महामेव, अनाज सस्ता, आश्विनमें सम, कार्तिकमें रोगपीडा, मार्गशीर्षादि चार मास धान्य सस्ता , राजासुखी , प्रजा राजाका सन्मान करें, फाल्गुनमें सस्ता, वृक्षोंमें नये पत्ते, मार्गमें सुख और मुभिक्ष || ४६ ॥ नलसंवत्सरका स्वामी शनि, थोड़ी वर्षा , अनाजभाव सम , चैत्रमें रोगपीडा , बहुत बादल और प्रबल वायु, वैशाखमें अरिष्ट, अनाज संग्रह करना, ज्येष्ठमें राजाओं में परस्पर विग्रह, लोकसुखी, मार्गमें विषमता, कभी आषाढ श्रावणमें थोड़ीवर्षा धान्यमें तीगुना चोगुना लाभ, भादोमें खण्डवृष्टि दुर्भिक्ष, प्राषाढमें धान्य संग्रह करना और आश्विनमें बेचना,मार्गशीर्षादि तीन मास अनाजका भाव सम, फाल्गुनमें रोग और चोरका भय, उत्तरदेशमें दुष्काल और पूर्वमें मुभिक्ष हो ॥ ५० ॥ पिंगलवर्ष का स्वामी राह, उच्चमुलतान नागपुर. मरुदेश देहलीदेश मधुरा
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