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मेवमहोदय तुसमर्थता,कार्तिकादिमासपञ्चकंयावत् परं राजविड्वरं,अश्वचतुष्पदपीडा वृक्षाः सफलाः ॥५२॥ सिद्धार्थ रविः स्वामी, सुभिक्षं सर्वदेशे वसतिबहुला अन्नविक्रयः, चैत्रे वैशाखे लो. कपीडा, ज्येष्ठाषाढयोरुद्दण्डवायुः, श्रावणे दिनत्रये महावर्षी सर्वान्नमहर्षता, भाद्रपदे खण्डवृष्टिः, आश्विनेऽन्नसमता, कातिके धान्यनिष्पत्तिबहुला अन्नसमर्घता, मार्गादिमासचतुष्टयमन्नं सारं सर्वत्र ग्राहकता उत्पातः क्वचिद् राजविरोधो लोकसुखमश्वमूल्यमहर्घता॥५३॥रौद्रे चन्द्रः स्वामी, पृथिवी-रोगबहुला, चतुष्पदनाशः, छत्रभङ्गोऽल्पमेघश्चैत्रादिमासत्रये महर्वता, आषाढे पावणेऽल्पमेघः, खण्डवृष्टिः, भाद्रपदे महान् मेघोऽन्नसमर्थता, अन्यद्वस्तुमञ्जिष्ठा सौपारिकालविंगसमर्थता लोकसुखी, चतुष्पदसमर्घता हस्तिपीडा ॥ ५४॥ दुर्मती भोमः स्वामी, चैत्रे वैशाखे च धान्यं समधे, सब धातु सस्ती, कार्तिकादि पांच मास तक राजविद्रोह, घोडा आदि पशुओंमें पीडा, वृक्षों में फल ॥ ५२ ॥ सिद्धार्थवर्षका स्वामी रवि, सुभिक्ष, लब देशमें बहुत वसति, अन्नकी विक्री, चैत्र वैशाख में लोकपीडा, ज्ये. ४ आषाढ उद्दण्ड (प्रबल) वायु, श्रावण में तीन दिन महावर्षा, सब अ. न तेज, भादोंमें खण्डवृष्टि, आश्विन में अन्नभाव सम, कार्तिकमें धान्य प्राप्ति, अनाज सस्ता, मार्गशीर्षादि चार मास सब स्थानमें अनाजकी प्राप्ति, कहीं राजविरोध, लोक सुखी और घोडेका भाव तेज हो ॥ ५३ ॥ रौद्रवर्षका स्वामी चन्द्र, पृथ्वीने रोग अधिक, पशुका विनःश, छत्रभंग, थोड़ी वर्षा, चैत्रादि तीन मास तेजी, आषाढ श्रावणमें थोड़ी वर्षा, खण्ड घृष्टि, भादोंने अधिक वर्षा, अनाज भाव सस्ता, दूसरी वस्तु मँजीठ सोपारी लेग आदि सस्ता, लोक सुखी, पशु सस्ते, और हाथियोंको पीडा ५४|| दुर्भतिवर्षका मामी भौम, चैत्र वैशाखमें धान्य सस्ते, ज्येष्ठौ भनाज भाव
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