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कालिकाचार्यकथा । तह तह नीअत्तेणं, उवहास सो करेइ संघस्स । जं दुद्धपाइओवि हु, विसमविसं मुंचई भुभगो ॥१८॥ दुद्धधोओ वि काओ, जह कण्हत्तं न मुंचई कह वि ।
तह नीयो नीअतं, न मुअइ उच्चत्तपत्तो वि ॥१९॥ यतः
दूधई सींचिउ लींबडउ, घाणउं किउं गुलेण । तोइ न छंडइ कहूयपण, जातिहिं तणई गुणेण ॥२ना अवमैनिय नियसंघ, नाउ पइन्नं इमं कुणइ सूरी ।
उम्मूले” जइ न इम, पडिणीयगई तो जामि ॥२१॥ यत:
जो पवयणपडिणीए, संते विरियम्मि नो निवारिज्जा । सो पारंचियपत्तो, परिभमइ अणंतसंसारं ॥२२॥ देव-गुरु-संघकज्जे, चुनिज्जा चकचट्टिसिन पि । कुविओ मुणी महप्पा, पुलाइलद्धीइ संपन्नो ॥२३॥ जइ कहवि इमो पुज्झइ, तोऽहमुवाय रएमि निरवायं । इअ चिंतिम करुणाए, सत्तो वि गुरू करइ एवं ॥२४॥ जइ निवइ गहिल्लो, कहं च रोरो तो ये कि लोआ ? । इच्चाइ जंपिरो" परिभमेइ गहिलु ब हा मूरी ॥२५॥ अह मंतीहि वि भणिओ, निव पंचमलोगयाल ! मुण सम्मं । पगईइ रंजणेणं, राया सेसो अ नामेणं ॥२६॥ पालिजइ साहुजणो, दसैणिवग्गो विसेसओ जेण ।
सो दुमिओ अ नरवर !, दुइदाई दारुणं देइ ॥२७॥ यतः
देवतापतिमाभने, साधूनां च विनाशने । देशभकं विजानीयाद्, दुर्भिक्षडम शिवः ॥२८॥ मैयलिज्जइ विमलकुलं, लजिज्जइ जेण लोअमज्झम्मि । कंठगयजीविएहि वि, तं न कुलीणेहिं कायन्वं ॥२९॥ इअ सोउ निवो कहो, मणइ अरे ! जाह मंदिरं निययं ।
सिक्स्ववह नियताए, इअ भणि ते वि" बारेइ ॥३०॥ १२ • नियम्मिय संघं D21 १३ • लेमि न मूलाओ प.LI | १४ य नामेण P11 १५ ° रो पुरि PI P2 D4 LL १६ सणव ° P2 LI L2 D1 D4 | १७ • रादिकम् P2 LI DID41 १८ मालिक LI D1 D2 D4 1 १९ कुसीलिहिं L2 1 २० विचारेइ D2 D4 LI
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