SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ क्रिया - कोश आदि का शस्त्र से छेदन भेदन करे तो उन संश्लेषिका-कर्मबन्धन उत्पन्न करने वाली भिन्नभिन्न परक्रियाओं की साधु मन से अभिलाषा न करे तथा वचन काया से न करावे । ०४४० भाव किरिया - भावक्रिया - सू० २ । अ २ । स् १ | टीका भावक्रिया त्वियं तद्यथा प्रयोगक्रिया उपायक्रिया करणीयक्रिया समुदानक्रिया ईर्यापथक्रिया सम्यक्त्वक्रिया मिध्यात्वक्रिया चेति । भावक्रिया के अनेक भेद हैं, यथा- प्रयोगक्रिया, उपायक्रिया, करणीयक्रिया, समुदानक्रिया, ऐर्यापथिक क्रिया, सभ्यक्त्वक्रिया इत्यादि । जिस क्रिया से कर्मबंध होता हो वह भावक्रिया है । ०४४१ महाकिरिया - महाक्रिया -भग० श ५। उ ६ । जिस क्रिया से जीव के महाकर्म का बंधन होता है वह महाक्रिया है । 'भगवई' में उपर्युक्त स्थल में अग्निकाय के सम्बन्ध में महाक्रिया तथा अल्पक्रिया दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ है । सय-प्रज्वलित अग्नि को महाक्रिया वाला कहा गया है। क्योंकि वह अनेक जीवों का दाह करती है । क्रमशः बुझती हुई, भस्मरूप होती हुई अग्नि को अल्प क्रियावाला स्तोक क्रियावाला कहा गया है क्योंकि वह अल्प - थोड़े जीवों को ही परिताप देती है । '०४*४२ महावज्जकिरिया - महावर्ज्यक्रिया प्र । पृ० ४८१ -आया श्रु २ अ २ । उ २ । सू ३६ / ० ५५ यदि साध्वाचार से अनभिज्ञ कोई गृहस्थ भिन्न-भिन्न श्रमण-ब्राह्मण- भिक्षुभिखारी आदि के रहने के उद्देश्य से भवन - वासस्थान आदि का अलग-अलग निर्माण करावे तथा इस तथ्य को जानते हुए उस उद्दिष्ट भवन - वासस्थान आदि में कोई साधु-श्रमण वास करे तो उस साधु-- श्रमण के महावर्ज्य क्रिया होती है । --देखो भिक्षु और क्रिया -०४४३ महासावज्जकिरिया - महासत्वद्यक्रिया - आया० श्रु २ । अ २ । उ २ | सू. ४१ । पृ० ५५ किसी श्रमण- साधु के रहने के उद्देश्य से यदि कोई भवन- गृह- धर्मशाला उपाश्रय आदि बनाया गया हो; जिसके बनाने में अनेक जीवों का महासभारम्भ -महासमरम्भमहारम्भ हुआ हो उसमें रहने से, उसको भोगने से साधु श्रमण को महासावय क्रिया होती है ।. - देखो भिक्षु और क्रिया -०४ ४४ वज्जकिरिया - वर्ज्यक्रिया - आया० श्रु २ । अ २ । उ २ । सू ३८ः । पृ० ५५ यदि कोई गृहस्थ यह जानता हुआ कि साधु-श्रमण उनके उद्देश्य से निर्मित भवनवासस्थान आदि में निवास नहीं करते हैं इसलिये अपने स्वार्थ से बनाये गये भवन आदि " Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy