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क्रिया-कोश
०४.३६ किरियाविसाल-क्रियाविशाल ----सम० सम १४ । सू १४ । पृ० ३२७
क्रियाविशाल-चतुर्दश पूओं में से एक पूर्व है जिसमें क्रिया के विषय में विशाल अर्थात विस्तृत वर्णन है । क्रियाविशाल पूर्व में तीस अध्याय हैं तथा पद का परिमाण नव क्रोड़ पदों का है। .०४.३७ दव्वकिरिया - द्रव्यक्रिया - सूय० श्रु २ । अ २ । सू १। नि । गा १५६
व्वे किरिए अएयण, पओगुवायकरणिज्जसमुदाणे । इरियावहसंमत्ते, सम्मत्त चेव मिच्छत्त।
-अविधा भाग ३ पृ० ५३२ टोका-तत्र द्रव्यविषये या क्रिया एजनता। एज़ कंपने। जीवस्याजीवस्य वा कंपनरूपा चलनस्वभावा सा द्रव्यक्रिया। सापि प्रयोगाद्विस्रसया वा भवेत् । तत्राप्युपयोगपूर्विका वाऽनुपयोगपूर्विका वाऽक्षिनिमेषमात्रादिका वा सा सर्वा द्रव्यक्रियेति ।
जीव तथा अजीव की स्पंदन रूप-गति रूप किया द्रव्यक्रिया है ! .०४.३८ पच्चक्खाणकिरिया-प्रत्याख्यानक्रिया
-सूय० श्र २ । अ४ । सू १ । पृ० १६६ टीका-प्रत्याख्यानाभावेऽनियतत्वाद्यत्किंचनकारितया . तत्प्रत्ययिका तन्निमित्ताभावादुत्पद्यते प्रत्याख्यानक्रिया । सावद्यानुष्ठानक्रिया तत्प्रत्ययिकश्च कर्मबंधस्तन्निमित्तश्च संसार इत्यतः प्रत्याख्यानक्रिया मुमुक्षुणा विधेयेति ।
प्रत्याख्यान के अभाव में अनिश्चितता से जो कुछ किया जाता है उस निमित्त से होनेवाले भावों से प्रत्याख्यान क्रिया उत्पन्न होती है । सावद्यानुष्ठान के निमित्त से जो कर्मों का बंध होता है उससे संसार की वृद्धि होती है अतः मुमुक्षुओं ने प्रत्याख्यान क्रिया का वर्णन किया है।
हमारी समझ में, सावद्यानुष्ठानिक क्रियाओं का जो प्रत्याख्यान किया जाय उससे होनेवाली क्रिया का निरोध अर्थात् कर्मों का संवरण---प्रत्याख्यान क्रिया है ! ०४.३६. परकिरियं-परक्रिया
-आया० श्रु २ । अ १३ । सू.१। पृ० ८५ स्वकीय शरीरादि सम्बन्धी अपने से भिन्न अन्य व्यक्ति द्वारा की गई किया-चेष्टाकाय-व्यापार पर क्रिया (पर-आत्मनो व्यतिरिक्तान्यस्तस्य क्रिया चेष्टा कायव्यापाररूपांता (क्रियां )-परक्रियां-शीलांगाचार्य टीका।)
साध्वाचार में पर क्रियाओं का निषेध है । परक्रिया अर्थात् साधु व्यतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति स्वमन से साधु के शरीरादि संबन्धी कोई क्रिया करे, यथा-व्रण, गुमड़े, फोड़े
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