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क्रिया कोश अन्य अपेक्षाओं से क्रियावादियों को १८० व्याख्याएँ की गई हैं। क्रिया शब्द से सम्बन्धित कुछ प्रमुख व्याख्याएँ यहाँ दी जाती हैं
१-क्रियाओं से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है उसमें ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है-ऐसे क्रियाप्रधान मत को मानने वाले क्रियावादी।
२-कोई भी क्रिया कर्ता के बिना संभव नहीं है अतः क्रिया के कर्ता के रूप में आत्मा के अस्तित्व को माननेवाला क्रियावादी।
•०४.३४ किरियावाय-क्रियावाद -सूय शु १। अ १२१ गा २०,२१॥ पृ० १२८
मूल--अत्ताण जो जाणइ जो य लोग।
गई च जो जाणइ णागई च ॥ जो सासयं जाण असासयं च । जाइं च मरणं च जणोववायं ।। अहो विसत्ताण विउट्टणं च। जो आसवं जाणइ संवरं च ॥ दुक्खं च जो जाणइ निजरं च ।
सो भासिउ-मरिहइ किरियवायं । जो आत्मा को जानता है, लोक-अलोक को जानता है, गति, आगति तथा अनागति को जानता है, शाश्वत-अशाश्वत भाव को जानता है, जन्म-मरण और उपपात को जानता है, आश्रव-संवर को जानता है तथा निर्जरा-बन्ध को जानता है वह क्रियावाद को जानता है ।
जीव-अजीवादि नव पदार्थों के अस्तित्व को माननेवाला मत या दर्शन क्रियावाद ।
.० ४.३५ किरियावाई दरिसणं---क्रियावादी दर्शन
--सूय० श्र ११ अ१| उ२। गा २४। पृ० १०३ मूल---- अहावरं पुरक्खायं किरियावाइदरिसणं ।
___कम्मचिन्तापणहाणं संसारस्स पवणं ॥ टीका - क्रियेव चैत्यकर्मादिका प्रधानं मोक्षाङ्गमित्येवं वदि शीलं येषां ते क्रियावादिनस्तेषां दर्शनमागमः क्रियावादिदर्शनम् ।
यहाँ क्रियावादी मिथ्या मतों का विवेचन किया गया है। मोक्ष की प्राप्ति में क्रिया ही प्रधान है—ऐसा मत मानने वाले क्रियावादी तथा उनका दर्शन क्रियावादी दर्शन है ।
उपर्युक्त गाथा के पश्चात की गाथाओं में इन क्रियावादियों की कुछ विचारधाराओं का वर्णन मिलता है ।
"Aho Shrutgyanam"