SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कषाय मारणांतिक, वैक्रिय तथा तैजस समुद्घात करने वाले जीव के वेदना समुद्घात करने वाले जीव की तरह कदाचित तीन, कदाचित चार, कदाचित् पाँच क्रियाएँ होती हैं । आहारक समुद्घात करने वाले जीव के भी निर्गत पुद्गलों के द्वारा जीव के हननादि के कारण कदाचित् तीन, कदाचित चार, कदाचित पाँच क्रियाएँ होती हैं । केवलो समुद्घात करने वाले जीव के द्वारा निर्जरित पुद्गल सूक्ष्म होते हैं अतः उनके कायिकी क्रियापंचक की कोई क्रिया नहीं होती है, केवल ऐर्यापथिक क्रिया होती है । कायिकी कियापंचक का जिस सूक्ष्मता से वर्णन किया गया है वह निम्न उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है (क) यदि कोई व्यक्ति यह जानने के लिए - वर्षा बरसती है या नहीं - अपने हाथ, पैर, बाहु और शरीर को बाहर फैलाता है या समेटता है तो उस व्यक्ति को कायिकी आदि पाँचों क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । (ख) यदि किसी वृक्ष का फल अपने गुरुभार से गिरे और नीचे गिरते हुए उस फल के द्वारा जब तक जीवों का हनन यावत् प्राणवियोग होता है तब तक जिन जीवों के शरीर से फल का वृक्ष बना उन जीवों को चार क्रियाएँ स्पष्ट होती हैं तथा जिन जीवों के शरीर से फल बना उन जीवों को पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं तथा स्वाभाविक रूप से अपने गुरुभार से गिरते हुए उस फल के जो जीव उपग्राहक - उपकारक होते हैं उन जीवों को भी कायिकी आदि पाँच क्रियाएँ स्पृष्ट होती हैं । कायिकी क्रियापंचक को भी दैनिक जीवन के उदाहरण देकर समझाया गया है – ये उदाहरण मननीय या धारणीय है । अन्य उदाहरणों के लिए क्रमाक ६६ १०, '६६ ११,६६ १२ तथा ३६१६ अवश्य पठनीय हैं । अप्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानक्रिया दार्शनिक तथ्यों पर आधारित है । जहाँ किसी भी पापस्थानिक कार्य के प्रत्याख्यान का अभाव होता है वहाँ अप्रत्याख्यान क्रिया होती है । क्रिया में यौगिक क्रिया की कल्पना नहीं है, मात्र प्रत्याख्यान का अभाव है अर्थात् कोई पापकर्म नहीं करूँगा- ऐसे संकल्प का अभाव है। अर्थात् किसी जीव को परितापना नहीं दूंगा, किसी जीव का प्राणातिपात नहीं करूँगा आदि-आदि संकल्पों के अभाव होने से ही अप्रत्यख्यान क्रिया होती है । अप्रत्याख्यान किया का दार्शनिक सिद्धांत कहता है कि यदि कोई व्यक्ति जीवहिंसा-प्राणातिपात नहीं कर रहा है लेकिन उसके हिंसा करने में कोई बाधा नहीं है, हिंसा करने का प्रत्याख्यान नहीं है, विरति नहीं है तो उस व्यक्ति को हिंसा की किया लगती है । कोई क्षुद्रातिक्षुद्र जीव जिसके मन वचन की शक्ति भी नहीं है, जिसकी चेतना स्वप्न जितनी भी नहीं है उस जीव के हिंसा नहीं करते हुए भी हिंसा सम्बन्धी क्रिया लगती है । यह क्रिया प्रत्याख्यान के अभाव होने से होती है । अप्रत्याख्यान क्रिया की [ 37 ] "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy