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________________ अवश्य होती है । जीव की परितापना होने से चार क्रियाएँ होती हैं तथा प्राण-वियोग होने से पाँचों क्रियाएँ होती है। जीव आरम्भिकी क्रिया कैसे और किस प्रकार करता है-यह कायिकी क्रियापञ्चक से समझाया गया है । कायिको क्रियापञ्चक में कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिको, प्राणातिपातको क्रिया होती है। जब जीव किसी जीव की हिंसा करने का विचार करता है तब सर्व प्रथम काया से समुत्थान करता है, फिर हिंसा करने के योग्य अधिकरण तैयार या ग्रहण करता है तथा साथ में प्रद्वेष की प्रबलता की वृद्धि करता है। तत्पश्चात् उद्दिष्ट जीव के ऊपर अधिकरण का निक्षेप या प्रहार करता है उससे उस जीव का प्रत्याघात होता है या उसके प्राण-काया जुदा होते हैं। काया के उत्थान या प्रयोग से क होती है, अधिकरण के निर्माण ग्रहण से आधिकरणिकी क्रिया होती है, प्रद्वेष की प्रबलता से प्राद्वेषिकी क्रिया होती है, जीव को परितापना कष्ट पहुँचाने से पारितापनिकी क्रिया होती है तथा जीव के प्राण का काया से जुदा हो जाने से प्राणातिपातकी क्रिया होती है। यदि कोई व्यक्ति किसी जीव को शस्त्र के आधात से गुरुतर घायल करे और वह घायल जीव यदि छः मास के भीतर मर जाय तो मारने वाले व्यक्ति को पाँच क्रियाएँ होती हैं और छः मास के बाद मरे तो उसको प्राणातिपातकी क्रिया नहीं होती है । शरीर, इन्द्रिय तथा योग का निर्माण करते हुए जीव के कायिकी क्रियापंचक की कदाचित तीन, कदाचित् चार, कदाचिव पाँच क्रियाएँ होती है। स्थावर जीव के श्वासनिःश्वास में पाँचों प्रकार के स्थावर जीवों को ग्रहण करते हुए कायिकी क्रियापंचक की कदाचित तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रियाएँ होती है । ज्ञानावरणीय आदि आठों प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बंधन करते हुए जीव के कायिकी क्रियापंचक को कदाचित तीन, कदाचित् चार, कदाचित पाँच क्रियाएँ होती है। जब जीव के प्रबल असाता वेदना उत्पन्न होती है तब वह जीव वेदना समुद्घात करता है 1 वेदना समुद्घात के द्वारा वह जीव अपने शरीरस्थ पुद्गलों को बाहर निकालता है और बहिर्गत युद्गल अनेक प्राण-भूत-जीव सत्त्वों के संपर्क में आते हैं और उनके संपर्क से उन जीवों में हलन चलन होता है, उनके वेदना उत्पन्न होती है, उससे वेदना समुद्घात करने वाले जीव को कायिको क्रियापंचक की कदाचित तीन, कदाचित चार, कदाचित पाँच क्रियाएँ होती हैं । उक्त हलन-चलन करने वाले जीवों से यदि अन्य जीवों को आघात पहुँचे तो उस वेदना समुद्घात करने वाले जीव के इन जीवों की अपेक्षा भी कदाचित् तीन, कदाचित चार, कदाचित पाँच क्रियाएँ होती हैं। [ 36 ] "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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