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क्रिया-कोश टीका येषां नारकाणां महती स्थितिस्ते इतरेभ्यो महाकम्मैतरादयोऽशुभकर्मापेक्षया भवन्ति, येषां त्वल्पा स्थितिस्ते इतरेभ्योऽल्पकर्मतरादयो भवन्तीति भावः।
जिन नारकियों की आयुष्य-स्थिति महती-बड़ी होती है वे दूसरे इतर नारकियों से अशुभ कर्म की अपेक्षा महाकर्मतर आदि होते हैं । जिन नारकियों की आयुष्य स्थिति अल्पथोड़ी होती है वे दूसरे इतर नारकियों से अशुभकर्म की अपेक्षा अल्पकर्मतर आदि होते है ।
चरम असुरकुमार की अपेक्षा परम असुरकुमार अल्पकर्मतर, अल्पक्रियातर, अल्पास्त्रवतर, अल्पवेदनातर होते हैं ; परम असुरकुमार की अपेक्षा चरम असुरकुमार महाकर्मतर, महा क्रियातर, महास्रवतर, महावेदनातर होते हैं । ऐसा स्थिति की अपेक्षा कहा गया है । यावत् स्तनितकुमार देव तक ऐसा जानना ।।
टीका-अल्पकर्मत्वं च तेषामसाताद्यशुभकर्मापेक्षं अल्पक्रियत्वं च तथाविधकायिक्यादिकष्ट क्रियाऽपेक्षं अल्पास्रवत्वं तु तथाविधकष्टक्रियाजन्यकर्मबन्धापेक्षं अल्पवेदनत्वं च पीडाभावापेक्षमवसेयमिति ।
महती स्थिति वाले असुरकुमार देव इतर अल्प स्थिति वाले देवों से असातावेदनीयादि अशुभ कर्मों की अपेक्षा अल्पकर्मतर होते हैं ; कायिकी आदि कष्ट क्रिया की अपेक्षा अल्प क्रियातर होते हैं । कायिकी आदि कष्ट क्रियानिमित्त होनेवाले कर्मबंध की अपेक्षा अल्पास्त्रवतर होते हैं ; तथा पीड़ा कष्टकर वेदना की अपेक्षा अल्पवेदनातर होते हैं ।
पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तिर्य'च पंचेन्द्रिय तथा मनुष्य के संबंध में नारकी की तरह कहना।
वाणव्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक देवों के संबंध में असुरकुमार की तरह कहना । ८ साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका की अपेक्षा
चत्तारि निग्गंथा पन्नत्ता, तंजहा। राइणिए समणे निगंथे महाकम्मे-महाकिरिए अगायावी-असमिए धम्मस्स अणाराहए भवइ (१), राणिए समणे निम्नथे अप्पकम्मे-अपकिरिए-आयावी-समिए धम्मस्स आराहए भवइ (२), ओमराइणिए समणे-निगंथे महाकम्मे-महाकिरिए-अणायावी असमिए धम्मस्स अणाराहए भवइ (३), ओमराइणिए समणे निग्गंथे अप्पकम्मे-अपकिरिए आयावी-समिए धम्मस्स आराहए भव। (४)।
चत्तारि निग्गंथिओ पन्नत्ता, तंजहा-राइणिया! समणी-निग्गंथी एवं चेव ४ ( गमगा)।
चत्तारि समणोवासगा पन्नत्ता, तंजहा–राइणिए समणोवासए महाकम्मे तहेव ४ (गमगा)।
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