________________
क्रिया-कोश उपपन्नक होते हैं वे महाकर्मतर यावत् महावेदनातर होते हैं तथा जो अमा यिसम्यग्दृष्टि उपपन्नक होते हैं वे अल्पकर्मतर, अल्पक्रियातर, अल्पास्त्रवतर, अल्पवेदनातर होते है ।
एक साथ उत्पन्न दो असुरकुमारों में जो मायिमिथ्याष्टि-उपपन्नक है वे महाकर्मतर यावत् महावेदनातर होते हैं तथा जो अमायिसम्यग्दृष्टि उपपन्नक हैं वे अल्पकर्मतर यावद अल्पवेदनातर होते है !
एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय को बाद देकर--तिर्य चपंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यंतर, ज्योतिषीवैमानिक देव के विषय में इसी प्रकार जानना ।
विश्लेषण : एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय जीव मायिमिथ्याष्टि होते हैं, अमायिमिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं। अतः एक साथ उत्पन्न दो पृथ्वीकायिक आदि जीव कर्म, क्रिया, आस्रव, वेदना की अपेक्षा समानतर होते है ।
'७ जीवदण्डक की अपेक्षा :-- अस्थि णं भंते ! चरमा वि नेरइया परमा वि नेरइया ? हंता, अस्थि ।
से नूणं भंते ! चरिमेहितो नेरइएहितो परमा नेरक्या महाकम्मतराए चेव, महाकिरियतराए चेव, महासवतराए चेव, महावेयणतराए चेव ; परमेहितो नेरइएहितो चरमा नेरइया अप्पकम्मतराए चेव, अप्पकिरियतराए चेव, अप्पासवतराए चेव, अप्पवेयणतराए चेव? हंता, गोयमा! चरमेहिंतो नेरइएहिंतो परमा-जावमहावेयणतरा चव, परमेहितो नेरइएहितो चरमा नेरक्या जाव- अप्पवेयणतरा चव।
से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ . जाव-अप्पवेयणतरा चव ? गोयमा ! ठिई पडुञ्च, से तेण?णं गोयमा ! एवं बुञ्चइ-जाव अप्पवेयणतरा चेव ।
अस्थि णं भंते ! चरमा वि असुरकुमार परमा वि असुरकुमारा ? एवं चव, नवरं विवरीयं भाणियव्वं परमा अप्पकम्मा, चरमा महाकम्मा, सेसं तं च व-जाव थणियकुमारा ताव एवमेव । पुढविकाइया-जाव- मणुस्सा एए जहा नेरइया । वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा।
-भग० श १६ । उ ५ । प्र १ से ३ । पृ. ७८६ . चरम नारकी ( अल्पस्थितिवाले नारकी ) से परम नारकी ( अधिक स्थिति वाले नारकी ) महाकर्मतर, महा क्रियातर, महाखवतर, महावेदनातर होते हैं ; परम नारकी से चरम नारको अल्पकर्मतर, अल्प क्रियातर, अल्पासवतर होते हैं ! यह कथन स्थिति की अपेक्षा से किया गया है।
"Aho Shrutgyanam"