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क्रिया-कोश चत्तारि समणावासियाओ पन्नत्ता, तंजहा - राइणिया समणोवासिया महाकम्मा तहेव चत्तारि गमा।
-ठाण स्था ४ । उ ३ । सू ३२० | पृ० २४२ चार प्रकार के निर्ग्रन्थ होते हैं यथा-(१) कोई एक रात्निक ( दीक्षापर्याय से ज्येष्ठ ) श्रमण-निर्ग्रन्थ जो महाकर्मवाला, महा क्रियावाला, आतापना को नहीं लेनेवाला, समिति रहिस है वह धर्म का भाराधक नहीं होता है, (२) कोई एक रात्निक श्रमण-निर्ग्रन्थ जो अल्प कर्मवाला, अल्प क्रिया वाला, आतापना को नहीं लेनेवाला, समिति युक्त है वह धर्म का आराधक होता है, (३) कोई एक लघुरा त्निक ( दीक्षापर्याय में लघु ) श्रमणनिर्ग्रन्थ जो महाकर्म वाला, महा क्रिया वाला, आतापना को नहीं लेने वाला, समिति रहित है वह धर्म का आराधक नहीं होता है तथा (४) कोई एक लघुरात्निक श्रमण-निर्ग्रन्थ जो अल्प कर्मवाला, अल्प क्रियावाला, आतापना को नहीं लेनेवाला, समिति युक्त है वह धर्म का आराधक होता है।
चार प्रकार को श्रमणी-निर्ग्रन्थनी होती है---जैसे निग्रन्थ के चार भेदों का कथन किया वैसे हो श्रमणी-निर्ग्रन्थनी के चार भेदों का कथन करना चाहिए।
चार प्रकार के श्रमणोपासक होते हैं । निग्रन्थ के चार भेदों की तरह श्रमणोपासक के चार भेदों का कथन करना ।
श्रमणोपासिका के भी चार भेद होते हैं जैसे 'निम्रन्थ के चार गमक कहे गये हैं वैसे ही श्रमणोपासिका के भी चार गमक कहने चाहिए ।
६६ १४ आस्रव-क्रिया-वेदना और निर्जरा की अपेक्षा चौपदी--
सिय भंते ! नेरच्या महासवा, महाकिरिया, महावेयणा, महानिज्जरा ? गोयमा ! णो इण? समठे । १, सिय भंते नेरइया महासवा महाकिरिया महावेयणा अप्पनिजरा ? हंता सिया २. सिय भंते नेरझ्या महासवा महाकिरिया अप्पवेयणा महानिज्जरा ?, गोयमा ! णो इण? सम४ । ३, सिय भंते ! नेरइया महासवा महाकिरिया अपवेयणा अप्पनिज्जरा ? गोयमा ! णो इण? समठ्ठ ४, सिय भंते ! नेरड्या महासवा अप्पकिरिया महावेयणा महानिज्जरा ? गोयमा ! णो इण? समढे ५, सिय भंते ! नेरइया महासवा अप्पकिरिया महावेयणा अप्पनिज्जरा ? गोयमा! णो इण? सम? ६, सिय भंते ! नेरच्या महासवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा महानिज्जरा ? नो इण? सम? ७, सिय भंते ! नेरइया महासवा अप्पकिरिया, अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा?णो इण? समठ्ठ ८, सिय भंते नेरझ्या अप्पासवा महाकिरिया महावेयणा
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