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________________ क्रिया-कोश ३२६ किया करने से ही वह दुःख का कारण है, नहीं करने से वह दुःख का कारण नहीं है। ऐसा भगवान महावीर कहते है तथा इसके विपरीत अन्यतीर्थी जो कहते हैं वह मिथ्या है । दE५ क्रिया और गुणस्थान .१ गुणस्थान और आरंभिकी क्रियापंचक :-- (देखो कमांक ६५.५) '२ गुणस्थान और कायिकी क्रियापंचक कायिकी क्रियापंचक आरंभिकी क्रिया का ही विश्लेषण है। अतः जिनको आरंभिकी क्रिया होती है उनको कायिकी क्रियापंचक में से कदाचित् तीन, कदाचित चार, कदाचित् पाँच क्रियाएँ होती हैं। आरंभिकी क्रिया प्रथम गुणस्थान से छठे गुणस्थान तक होती है अतः इन छः गुणस्थानवी जीवों के कायिकी क्रियापंचक में से कदाचित तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पाँच क्रियाएँ होती हैं। छठे के उत्तरवर्ती गुणस्थानों में कायिकी क्रियापंचक की कोई भी क्रिया नहीं होती है। '३ गुणस्थान और जीव की सक्रियता-अक्रियता :जीवा णं भंते ! कि सकिरिया-अकिरिया ? xxx ( देखो पूरे पाठ के लिये क्रमांक ८१.१ ) टोका-तत्र ये असंसारसमापन्नकारते सिद्धाः, सिद्धाश्च देहमनोवृत्त्यभावतोऽक्रियाः, ये तु संसारसमापन्नकास्ते द्विविधाः शैलेशीप्रतिपन्नका अशैलेशी प्रतिपन्नकाश्च,शैलेशी नामायोग्यवस्था तां प्रतिपन्नाः शैलेशीप्रतिपन्नाः, ततः पूर्ववत् स्वार्थिकः कप्रत्ययः, शैलेशोप्रतिपन्नकाः, तद्व्यतिरिक्ताः अशैलेशीप्रतिपन्नकाः, तत्र ये शैलेशीप्रतिपन्नकास्ते, सूक्ष्मबादरकायवाङ्मनोयोगनिरोधादक्रियाः, ये त्वशैलेशीप्रतिपन्नकास्ते सयोगित्वात् सक्रियाः। सिद्ध देह तथा मन की वृत्ति के अभाव में अक्रिय होते हैं। प्रथम गुणस्थान से तेरहवें गुणस्थान तक के जीव किसी न किसी अपेक्षा से सक्रिय होते हैं तथा चौदहवें गुणस्थान की शैलेशी नामक अयोगी अवस्था में प्रतिपन्न जीव . सूक्ष्म-बादर--काय-वचन-मन-योग के निरोध से अक्रिय होते हैं । ४२ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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