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क्रिया-कोश पहले क्रिया होती है और पीछे वेदना होती है परन्तु पहले वेदना और पीछे किया होती है, यह बात नहीं है ।
टीका—उक्ताः क्रियाः, अथ तज्जन्यं कर्म, तद्वदनां चाधिकृत्य आह -- 'पुठवं भंते !' इत्यादि। क्रिया करणम्, तज्जन्यत्वात् कर्म अपि क्रिया, अथवा क्रियत इति क्रिया-कर्म एव । वेदना तु कर्मणोऽनुभवः, सा च पश्चादेव भवति, कर्मपूर्वकत्वात् तदनुभव( न )स्य इति ।
यहाँ क्रियाजन्य कर्म और कर्मजन्य वेदना के सम्बन्ध में कथन किया गया है। जो की जाय उसे क्रिया कहते हैं, क्रिया से कर्म उत्पन्न होता है अतः जन्य और जनक में अभेद की विवक्षा करने से कर्म को भी क्रिया कहा जाता है। अथवा यहाँ क्रिया शब्द का अर्थ कर्म है। कर्म के अनुभव को वेदना कहते हैं। कर्म के बाद वेदना होती है क्योंकि कर्मपूर्वक ही वेदना होती है। कर्म का सद्भाव पहले होता है और उसके बाद वेदना ( कर्म का अनुभव ) होती है ।
६६.४ क्रिया और दुःख :--
( अण्णउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति, जाव एवं पकवंति )
जा सा पुग्विं किरिया दुक्खा, कजमाणी - किरिया अदुक्खा, किरियासमयवितिक्कतं च णं कडा किरिया दुक्खा ।
जा सा पुव्विं किरिया दुक्खा, कजमाणी किरिया अदुक्खा, किरियासमयवितिकतं च णं कडा किरिया दुक्खा । सा कि करणओ दुक्खा, अकरणओ दुक्खा ? अकरणो णं सा दुक्खा, नो खलु सा करणओ दुक्खा, सेवं वत्तव्वं सिया । xxx
गोयमा! जंणं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव xxx वत्तव्वं सिया। जे ते एवं आहिंसु, मिच्छा ते एवं आहिंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्वामि xxx
पुव्वं किरिया अदुक्खा | जहा भासा तहा भाणियव्वा ( कजमाणी किरिया दुक्खा, किरियासमयवितिकतं च णं कडा किरिया अदुक्खा ) किरिया वि जावकरणओ णं सा दुक्खा, नो खलु सा अकरणओ दुक्खा, सेवं वत्तव्वं सिया।
-भग० श १ । उ १० । प्र ३१४, ३१५, ३१७, ३२३ । पृ० ४१४-१५ करने से पहले क्रिया दुःख का कारण नहीं है, को जाती हुई क्रिया ही दुःख का कारण है, किया का समय व्यतिकांत होने के बाद की कृतक्रिया दुःख का कारण नहीं है ।
"Aho Shrutgyanam"