SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रिया-कोश ३२७ शांकरभाष्य-सम्यग्दर्शनप्राप्त्युपायत्वेन योगेन युक्तो विशुद्धात्मा विशुद्धसत्वो विजितात्मा विजितदेहो जितेन्द्रियश्च सर्वभूतात्मभूतात्मा सर्वेषां ब्रह्मादीनां स्तम्बपर्यन्तानां भूतानामात्मभूत आत्मा प्रत्यक्चेतनो यस्य स सर्वभूतात्मभूतात्मा । सम्यगदर्शीत्यर्थः । स तत्रैवं वर्तमानो लोकसंग्रहाय कर्म कुर्वन्नपि न लिप्यते । न कर्मभिर्बध्यत इत्यर्थः । _योगयुक्तो- सम्यग्दर्शन प्राप्ति के उपायरूप योग से युक्त, विशुद्धात्मा-विशुद्धसत्य-जीव, विजितात्मा-विजितदेह, जितेन्द्रिय, सर्वभूतों की चेतना जिसमें व्याप्त हो गई है ऐसा सम्यग्दर्शी जोव या आत्मा लोकसंग्राहक कर्म-क्रिया करता हुआ भी कमों से लिप्त-बद्ध नहीं होता है । '६६ क्रिया सम्बन्धी फुटकर पाठ६E १ क्रिया और स्याद्वाद स्याद्वादाय नमस्तस्मै, यं विना सकलाः क्रियाः । लोकद्वितयभाविन्यो, नैव साङ्गत्यमियूति ।। ---ठाणा० स्था १ । सू २ । टीका में उद्धृत उस स्यादवाद को नमस्कार हो जिस स्यादवाद के बिना दोनों लोकों में होनेवाली सर्व क्रियाओं की योग्य संगति नहीं बैठती है। 'EE२ क्रिया और आस्रवएगे आसवे। ठाण स्था १ । सू१३ । पृ० १८३ टीका में उद्धत इदिय, कसाय, अन्वय, किरिया पणच उरपंचपणुबीसा । जोगा तिन्नेव भवे, आसवभेया उ बायाला ॥ उपर्युक्त गाथा में क्रिया को आस्रव के ४२ भेदों में गिनाया गया है । आगम में, तत्त्वार्थसूत्र में वर्णित क्रिया के २५ भेदों को आस्रव के ४२ भेदों में सम्मिलित किया गया है। '६६ ३ क्रिया और वेदना :-- पुस्विं भंते ! किरिया, पच्छा वेयणा ? पुच्विं वेयणा, पन्छा किरिया ? मंडियपुत्ता ! पुत्विं किरिया, पच्छा वेयणा । नो पुलिंब वेयणा, पच्छा किरिया। -भग० श ३ । उ ३ प्र७! पृ० ४५६ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy