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________________ ३२२ . क्रिया-कोश यदि कोई व्यक्ति (गृहस्थ) साधु के शरीर को पूँछे या विशेष रूप से साफ करे तो साधु उसकी अभिलाषा न करे और न ऐसे कार्य उससे करावे । इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति (गृहस्थ) साधु के शरीर को मले या मालिश करे ; शरीर में तेल-घृत-चर्बी मले या मालिश करे ; शरीर में लोध्र कल्क-चूर्ण आदि उबटन द्रव्य घसे या लेप करे ; शरीर को ठण्डे या उष्ण प्राशुक जल से प्रक्षालन करे या धोवे ; शरीर में अन्य प्रकार के विलेपन जाति के द्रव्यों का आलेपन या लेपन करे ; शरीर पर विभिन्न प्रकार के धूप जाति के द्रव्यों से धूप देवे या विशेष धूप देवे, तो साधु इन कार्यों की अभिलाषा न करे और न इस प्रकार के कार्य उससे करावे (सू १२ से १८)। यदि कोई व्यक्ति (गृहस्थ) साधु के शरीर में व्रण-फोड़ा-क्षत पूछे या विशेष रूप से साफ करे तो साधु उसकी अभिलाषा न करे और न ऐसे कार्य उससे करावे। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति (गृहस्थ) साधु के शरीर में व्रण को मले या मालिश करे; शरीर में व्रण पर तेल-धृत चर्बी मले या मालिश करे ; शरीर में व्रण पर लोधू-कल्क-चूर्ण आदि मलहम लगावे या लेप करे ; शरीर में व्रण को ठण्डे या उष्ण प्राशुक जल से प्रक्षालन करे या धोवे, शरीर में व्रण पर अन्य प्रकार के विलेपन जाति के द्रव्यों का आलेपन या विलेपन करे ; शरीर में व्रण पर विभिन्न प्रकार के धूप जाति के द्रव्यों से धूप देवे या विशेष धूप देवे ; शरीर में वण को विभिन्न प्रकार के शस्त्र से छेद करे या काटे या छेदकर या काटकर मवाद रक्त निकाले या परिष्कार करे तो साधु इन कार्यो' की अभिलाषा न करे और न इस प्रकार के कार्य उससे करावे (सू १६ से २७)। वण के सम्बन्ध में गृहस्थ कृत जिन-जिन क्रियाओं का वर्णन ऊपर किया गया है उसी प्रकार शरीर में गंड गांठ, अरइयं-दुःखदायी फोड़ा, पिडयं--पीड़ादायक घाव तथा भंगदर सम्बन्धी उन-उन क्रियाओं का वर्णन करके कहना चाहिए कि साधु इन क्रियाओं की अभिलाषा न करे और न इस प्रकार की क्रियाओं को करावे (सू २८ से ३४)। यदि कोई व्यक्ति (गृहस्थ) साधु के शरीर का स्वेद या मैल तथा आँख का मैल या कान का मैल या दाँत का मैल या नख का मैल निकाले या साफ करे तो साधु इन कार्यों की अभिलाषा न करे और न इस प्रकार की क्रिया उससे करावे (सू ३५-३६)। यदि कोई व्यक्ति (गृहस्थ) साधु के बढ़े हुए बाल, रोम, भ्र, के बाल, कांख-काछ के बाल, गुदा के बाल को काटे या तराशे तो साधु इन कार्यों की अभिलाषा न करे और न इस प्रकार की क्रिया उससे करावे (सू ३७)। यदि कोई व्यक्ति ( गृहस्थ) साधु के सिर में से जूका या लीख निकाले तो साधु इन कार्यों को अभिलाषा न करे और न इस प्रकार के कार्य उससे करावे ( सू ३८)। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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