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क्रिया - कोश
३२१ अंकंसि वा, पलियं कंसि वा तुयट्टावेत्ता अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, हमलं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे । ( प्र ७२-७३)
से से अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता दोहाई बालाई दीहाई रोमाई', दोहाई भमुहाई, दोहाई कक्खरोमाई, दीहाइ वत्थिरोमाई कप्पेज्ज वा, संठेज्ज वा- -णो तं साइए, णो तं नियमे । ( प्र ७४)
से से परो अंकसि वा, पलियंसि वा तुयट्टावेत्ता सीसाओ लिक्खं वा, जूयं वा, णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा - - णो तं साइए, णो तं नियमे । ( प्र ७५)
से से परो अंसि वा, पलियंकंसि वा, तुयट्टावेत्ता हारं वा, अद्धहारं वा, उरत्थं वा, गेवेयं वा, मउडं वा, पालंबं वा, सुवण्यसुत्त वा आविधेज्ज वा पिणिघेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे । ( प्र ७६)
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से से परो आरामंसि वा, उज्जाणंसि वा णीहरेत्ता वा, पविसेत्ता वा पायाइ आमज्जेज वा, पमज्जेज्ज वा णो तं साइए, जो तं नियमे । xxx । से से परो सुद्धणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे से से परो असुद्धणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउ, से से परो गिलाणस्स सचित्ताणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, तयागि वा हरियाणि वा खणित्तु वा, कड्ढेत्तु वा, कड्ढावेत्तु वा तेइच्छं आउट्टज्जा - णो तं साइए, णो तं पियमे । ( प्र ७७-७८ ) – आया० श्रु २ । अ १३ । सू १ से ७८ । पृ० ८५-८७ साधु संश्लेषिका अर्थात् कर्मबंधन की जननी परक्रिया की अभिलाषा न करे तथा न
करावे |
"पर आत्मनो व्यतिरिक्तान्यस्तस्य क्रिया चेष्टा कायव्यापाररूपा तां परक्रियां" आत्मा (स्वयं) से भिन्न अन्य व्यक्ति की काय व्यापार रूप क्रिया - चेष्टा परक्रिया
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होती यदि कोई व्यक्ति (गृहस्थ ) साधु के पैरों को पूँछे या विशेष रूप से साफ करे तो साधु उसकी अभिलाषा न करे और न ऐसे कार्य उससे करावे । इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति (गृहस्थ) साधु के पैरों को मले या मालिश करे; सहलावे या रगड़े ; पैरों में तेलघृत-चर्बी मले या मालिश करे ; पैरों में लोध्र- कल्क-चूर्ण आदि उबटन द्रव्य, घसे या लेप करे ; पैरों को ठण्डे या उष्ण प्राशुक जल से प्रक्षालन करे या धोवे; पैरों में अन्य प्रकार के विलेपन जाति के द्रव्यों का आलेपन या लेपन करे; पैरों को विभिन्न प्रकार के धूप जाति के द्रव्यों से धूप देवे या विशेष धूप देवे ; पैरों से कील- कांटा निकाले; पैरों का मवाद - खून निकाले या परिष्कार करे तो साधु इन कार्यों की अभिलाषा न करे और न इस प्रकार के कार्य उससे करावे । ( सू १ से ११)
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