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क्रिया-कोश यदि कोई व्यक्ति--गृहस्थ साधु को गोद में या पलंग पर सुलाकर उसके पैर के सम्बन्ध में उन-उन क्रियाओं को करे जिनका वर्णन उपर्युक्त सू १ से ११ में किया गया है तो साधु इन कार्यों की अभिलाषा न करे और न उन-उन कार्यों को उससे करावे (सू ३६ से ४८)।
ऊपर में जिस प्रकार शरीर, शरीर में वण, शरीर में गंड-गाँठ, अरइयं- दुःखदायी फोड़ा, पिडयं--पीड़ादायक घाव तथा भगन्दर, शरीर का स्वेद या मैल, आँख का मैल या कान का मैल या दाँत का मैल या नख का मैल, बढ़े हुए बाल, रोम, भ, के बाल, कांख के बाल, गुदा के बाल, शिर में से जू का या लीख आदि सम्बन्धी जिन-जिन क्रियाओं का वर्णन किया गया है---उन-उन क्रियाओं को साधु को गोद में या पलंग पर सुलाकर यदि कोई व्यक्ति-गृहस्थ करे तो साधु उनकी अभिलाषा न करे तथा न उन-उन क्रियाओं को करावे (सू ४६ से ७५)।
यदि कोई व्यक्ति--गृहस्थ साधु को गोद में या पलंक पर सुलाकर हार, अर्द्रहार या वक्षहार, या गले का आभरण, या सुकुट-शिर का आभुषण या माला या सुवर्णसुत्त बांधे या पहरावे तो साधु इनकी अभिलाषा न करे और न करावे (सू ७६ )।
___ यदि कोई व्यक्ति-गृहस्थ साधु को उपवन या उद्यान में ले जाकर पैर आदि के सम्बन्ध में पूछने आदि की क्रियाएँ करे तो साध उनकी अभिलाषा न करे और न करावे (सू ७७)।
यदि कोई व्यक्ति-गृहस्थ विद्या-मन्त्र के बल से या सचित्त कन्द या मूल या त्वचा या हरी वनस्पति को खोदकर, छेदकर, काटकर ग्लान साधु को चिकित्सा करे तो साधु उसकी अभिलाषा न करे और न करावे (सू ७८ ) !
·११ अन्योन्य क्रिया:एवं ( परकिरियं सरिसं ) यवा अण्णमष्णकिरिया वि ।
- आया० श्रु २ । अ १४ । पृ० ८७ टीका-अन्योन्यं परस्परतः साधुना कृतप्रतिक्रियया न विधेया इत्येवं नेतव्योन्योन्यक्रिया।
पारस्परिक अर्थात् एक दूसरे के प्रति शरीर - अङ्गोपांग आदि सम्बन्धी दान-प्रतिदान की अभिलाषा से की गई क्रिया-- अन्योन्यक्रिया।
इसी प्रकार परक्रिया की तरह अन्योन्य क्रिया के समग्र पाठ जान लेने चाहिए ।
"Aho Shrutgyanam"