________________
३०४
क्रिया - कोश
अवस्था में अक्रियावादी द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय जीव किसी भी प्रकार का आयुष्य नहीं बाँधते हैं ।
अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्य चयोनिक जीव चारों प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं !
सलेशी, कृष्ण - नील- कापोतलेशी अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जोव, कृष्णपाक्षिक-शुक्लपाक्षिक अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्य चयोनिक जीव, अज्ञानी, मति श्रुतविभंग - अज्ञानी अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक जीव, आहारादि चारों संज्ञाओं में उपयोग वाले अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्य चयोनिक जोव, संवेदक, स्त्री-पुरुष नपुंसक वेदक अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्य चयोनिक जीव, सकषायौ, क्रोध मान-माया - लोभकषायी अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्य चयोनिक जीव, सयोगी, मन-वचन-काययोगी अक्रियावादी पंचेद्रिय तियं चयोनिक जीव तथा साकारोपयोग वाले - अनाकारोपयोग वाले अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्य' चयोनिक जीव चारों प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं ।
तेजो-पद्म- शुक्ललेशी अक्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्य चयोनिक जीव नरकायुष्य बाद अवशेष तीन प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं ।
अक्रियावादी मनुष्य जीव चारों प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं ।
सलेशी यावत् अनाकारोपयोग तक जो जो विशेषण अक्रियावादी मनुष्य में पाये जायँ उन उन विशेषणों सहित अक्रियावादी मनुष्य जीव धारों प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं परन्तु तेजो-पद्म-शुक्ल-लेशो अक्रियावादी मनुष्य जीव नरकायुष्य बाद अवशेष तीन प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं ।
अक्रियावादी वाणव्यन्तर- ज्योतिषी वैमानिक देव मनुष्य तथा तिर्यचयोनिक जीव का आयुष्य बाँधते हैं ।
सलेशी यावत् अनाकारोपयोग तक जो-जो विशेषण अक्रियावादी वाणव्यन्तरज्योतिषी वैमानिक देवों में पाये जायँ उन उन विशेषणों सहित अक्रियावादी वाणव्यन्तरज्योतिषी-वैमानिक देव तिर्य'चयोनिक तथा मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं !
'२'६'६ अक्रियावादी जीव और भव- अभवसिद्धिकता :--
अकिरियावाई णं भंते! जीवा किं भवसिद्धिया० - पुच्छा । गोयमा ! भवसि - द्विया वि, अभवसिद्धिया वि । ( प्र ३१ )
सस्सा णं भंते! जीवा अकिरियावाई किं भव०
सिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि । xxx | एवं जाव- -सुक्कलेरसा ।
xxx एवं एएणं अभिलावेणं कण्हपक्खिया तिसु वि समोसरणेसु
भयणाए ।
पुच्छा । गोयमा ! भव
" Aho Shrutgyanam"