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________________ क्रिया-कोश २६७ बनाये हुए नहीं है, अकृत अर्थात् किसी के किये हुए नहीं है, अकृत्रिम अर्थात घटादि की तरह कृत्रिम नहीं हैं, अकृतक अर्थात इनको निष्पत्ति में अन्य किसी की अपेक्षा नहीं है, अनादि-अनिधन अर्थात् आदि रहित अन्त रहित हैं, अवन्ध्य अर्थात सर्व आवश्यक कार्य के कर्ता हैं, अपुरोहित अर्थात् कार्य में प्रवृत्त करनेवाली इनसे भिन्न कोई शक्ति नहीं है, ये स्वतन्त्र हैं और शाश्वत हैं । __ ये पाँच महाभूत ही जीवकाय हैं, ये हो अस्तिकाय है, ये ही लोक है, इनसे भिन्न कोई लोक नहीं है, ये हो लोक के मुख्य कारण है अर्थात् संसार में जो कुछ भी कार्य होता है उसमें पाँच महाभूत ही प्रधान कारण हैं, तृणमात्र अर्थात छोटा से छोटा कार्य भी पाँच महाभूतों के द्वारा होता है। पंच महाभूतों से हो आत्मा निष्पन्न होती है और इनके विनाश से विनष्ट हो जाती है। अतः क्रिया, अक्रिया, सुकृत, दुष्कृत, कल्याण, पुण्य, पाप, साधु, असाधु, सिद्धि, असिद्धि, नरक, स्वर्ग आदि नहीं है। जो कुछ भी है वह पंच महाभूत ही है। .१४ अक्रिय आत्मवादी१ परिभाषा / अर्थ कुव्वं च कारयं चेव, सव्वं कुव्वं न विज्जई । एवं अकारओ अप्पा, एवं ते उ पगम्भिा ।। -सूय श्रु १ । अ १ । उ १ । सू १३ । पृ० १०१ जे केई लोगंमि उ अकिरिय-आया, अन्नेण पुट्ठा धुयमादिसति । --सूय श्रु १ । अ १० । गा १६ । पृ० १२५ आत्मा स्वयं कोई क्रिया नहीं करता है और दूसरे के द्वारा भी नहीं कराता है तथा वह परिस्पंदनात्मकादि सभी क्रिया नहीं करता है। इस प्रकार आत्मा अकारक अर्थात् क्रिया का कत्ता नहीं है---ऐसा अक्रिय आत्मवादी (सांख्य ) कहते हैं । कई व्यक्ति आत्मा को अक्रिय मानते हैं क्योंकि आत्मा की निलेपता के कारण न बंध होता है, न मोक्ष होता है । '२ अक्रिय आत्मवादी के मत का प्रतिपादन.. कुर्वन्निति स्वतन्त्रः कर्ताऽभिधीयते, आत्मनश्चामूर्तत्त्वान्नित्यत्वात सर्वव्यापिस्वाञ्च कत्तृत्त्वानुपपत्तिः, अतएव हेतोः कारयितृत्वमप्यात्मनोऽनुपपन्नमिति, xxxi ततश्चात्मा न स्वयं क्रियायां प्रवर्तते, नाप्यन्यं प्रवर्तयति, यद्यपि च स्थितिक्रियां मुद्राप्रतिबिम्बोदयन्यायेन भुजिक्रियां करोति तथाऽपि समस्तक्रियाकत त्वं तस्य नास्तीत्येतदर्शयति'सव्वं कुव्वं ण विजई त्ति 'सर्वा' परिस्पन्दादिकां देशाद्देशान्तरप्राप्तिलक्षणां "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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