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क्रिया-कोश ... (२) तं च पिहुद्देसेणं पुढो-भूत-समवायं जाणेजा। तंजहा-पृढवी एगे महब्भूये, आउ दुश्च महभूये, तेउ तच्च महन्भूये, वा उ च उत्थे महन्भूये, आगासे पंचमे महब्भूये।
(३) ते नो एवं विपडिवेदेति, तंजहा-किरिया इ वा जाव (अकिरिया इ वा सुक्कडे इ वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहु इ वा असाहु इ वा सिद्धि इ वा असिद्धि इ वा निरए इ वा ) अनिरए इ वा ।।
--सूय० २२ । १ । सू१० | पृ० १६६ (४) साम्प्रतं विशेषेण सूत्रकार एव चार्वाकमतमाश्रित्याऽह ।
-सूय० श्र २ . अ १ । सू १० । टीका इस लोक में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश-ये पाँच महाभूत है । इन महाभूतों से ही उत्पन्न एक आत्मा है। इन महाभूतों के विनाश से जीवात्मा का विनाश हो जाता है। केवल पाँच महाभूत ही लोक का कारण है। अतः क्रिया, अक्रिया, सुकृत, दुष्कृत, कल्याण, पुण्य, पाप, साधु, असाधु, सिद्धि, असिद्धि, नरक, स्वर्ग आदि नहीं है। इस मत को मानने वालों को पाँच महाभूतवादी कहा जाता था तथा इनका अपर नाम चार्वाक भी था !
.२ पंच महाभूतवादी के मत का प्रतिपादन
इह खलु पंच महब्भूया, जेहिं नो विजइ किरिया त्ति वा अकिरिया त्ति वा, सुक्कडे त्ति वा दुक्कडे त्ति वा, कल्लाणे त्ति वा, पावर त्ति वा, साहु त्ति वा, असाह त्ति वा, सिद्धि त्ति वा, असिद्धि त्ति वा, निरए त्ति वा, अनिरए त्ति वा। अवि अंतसो तणमायमवि।
तं च पिहुद्देसेणं पुढो-भूत-समवायं जाणेजा। तंजहा-पुढवी एगे महन्भूये, आउ दुच्चे महब्भूये, तेउ तच्चे महब्भूये, बाउ चउत्थे महन्भूये, आगासे पंचमे महब्भूये।
इच्चए पंच-महन्भूया अणिम्मिया अणिम्माविया अकडा, णो कित्तिमा णो कडगा अणाइया अणिहणा, अवंझा, अपुरोहिया, सतंता सासया । xxx !
एयावया व जीवकाए, एयावया व अस्थिकाए, एयावया व सव्वलोए; एयं मुह लोगरस करणयाए; अवि अंतसो तण-माय-मवि ।
-सूय० श्रु२ ! अ १ । सू १० । पृ०१३८-१३६ पृथ्वी, अप्, अग्नि, वायु और आकाश- ये पाँच महाभूत है। ये पाँच महाभूत अनिर्मित अर्थात् ईश्वरादि के द्वारा निर्मित नहीं हैं, अनिर्मा पित अर्थात् अन्य किसी के द्वारा
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