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क्रिया - कोश
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पंच स्कन्धात्मक अक्रियावादी कहते हैं कि यह संसार पाँच स्कंधात्मक है तथा क्षण मात्र ही स्थित रहता है । पाँच स्कंधों से भिन्न कोई आत्मा नाम का स्कंध नहीं है । स्कंधों-भूतों से भिन्न अथवा अभिन्न, किसी हेतु से या अहेतु से आत्मा की उत्पत्ति नहीं होती है ।
२ पंच स्कंधवादी के मत का प्रतिपादन -
टीका - एके केचन वादिनो बौद्धाः पंच स्कंधान् वदति । रूप- वेदना-विज्ञानसंज्ञा-संस्काराख्याः पंचैव स्कंधा विद्यन्ते नापरः कश्चिदात्माख्यः स्कंधोस्तीत्येवं प्रतिपादयन्ति ।
बौद्धों की एक शाखा पंच स्कंधों को मानती है। उनका कथन है कि रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा, संस्कार ---ये ही पाँच स्कंध विद्यमान हैं, इनसे भिन्न कोई आत्मा नहीं हैकेवल स्कंध ही है - ऐसा वे प्रतिपादन करते हैं ।
*१२ धातुवादी
१ परिभाषा / अर्थ
पुढची आउ तेऊ य, तहा वाऊ य एगओ । चत्तारि धाडणो रूवं, एवमाहंसु आवरे ॥
- सूय० श्रु । अ १ । उ १ । गा १८ । पृ० १०१ धातुवादी अक्रियावादी कहते हैं कि यह संसार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु-इन चार धातुओं के संयोग से ही रूप ---आकृति निष्पन्न होती है ।
२ धातुवादी के मत का प्रतिपादन
बौद्धों की एक शाखा का कथन है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु-ये चार धातुरूप
1 ये चार पदार्थ धातुरूप है । ये चार पदार्थ जगत को धारण करते हैं, पोषण करते हैं अतः इनको धातु कहा जाता है । ये चार धातुरूप पदार्थ जब एकाकार - संयोग को प्राप्त कर शरीर रूप में परिणत होते हैं तब उसमें जीव रूप संज्ञा उत्पन्न होती है । इन चार धातुरूप पदार्थों से भिन्न कोई आत्मा नही है ।
*१३ पंच महाभूत वादी
१ परिभाषा / अर्थ
(१) संति पंच महन्भूया, इहमेगेसिमाहिया । पुढवी आउ तेड वा, वाउ आगासपंचमा ॥ एए पंच महब्भूया, तेव्भो एगो त्ति आहिया । अह तेसिं विणासेणं, विणासो होइ देहिणो ||
--- सूय ० अ १ । अ ११ गा ७-८ । पृ० १०१
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