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________________ क्रिया - कोश २६५ पंच स्कन्धात्मक अक्रियावादी कहते हैं कि यह संसार पाँच स्कंधात्मक है तथा क्षण मात्र ही स्थित रहता है । पाँच स्कंधों से भिन्न कोई आत्मा नाम का स्कंध नहीं है । स्कंधों-भूतों से भिन्न अथवा अभिन्न, किसी हेतु से या अहेतु से आत्मा की उत्पत्ति नहीं होती है । २ पंच स्कंधवादी के मत का प्रतिपादन - टीका - एके केचन वादिनो बौद्धाः पंच स्कंधान् वदति । रूप- वेदना-विज्ञानसंज्ञा-संस्काराख्याः पंचैव स्कंधा विद्यन्ते नापरः कश्चिदात्माख्यः स्कंधोस्तीत्येवं प्रतिपादयन्ति । बौद्धों की एक शाखा पंच स्कंधों को मानती है। उनका कथन है कि रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा, संस्कार ---ये ही पाँच स्कंध विद्यमान हैं, इनसे भिन्न कोई आत्मा नहीं हैकेवल स्कंध ही है - ऐसा वे प्रतिपादन करते हैं । *१२ धातुवादी १ परिभाषा / अर्थ पुढची आउ तेऊ य, तहा वाऊ य एगओ । चत्तारि धाडणो रूवं, एवमाहंसु आवरे ॥ - सूय० श्रु । अ १ । उ १ । गा १८ । पृ० १०१ धातुवादी अक्रियावादी कहते हैं कि यह संसार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु-इन चार धातुओं के संयोग से ही रूप ---आकृति निष्पन्न होती है । २ धातुवादी के मत का प्रतिपादन बौद्धों की एक शाखा का कथन है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु-ये चार धातुरूप 1 ये चार पदार्थ धातुरूप है । ये चार पदार्थ जगत को धारण करते हैं, पोषण करते हैं अतः इनको धातु कहा जाता है । ये चार धातुरूप पदार्थ जब एकाकार - संयोग को प्राप्त कर शरीर रूप में परिणत होते हैं तब उसमें जीव रूप संज्ञा उत्पन्न होती है । इन चार धातुरूप पदार्थों से भिन्न कोई आत्मा नही है । *१३ पंच महाभूत वादी १ परिभाषा / अर्थ (१) संति पंच महन्भूया, इहमेगेसिमाहिया । पुढवी आउ तेड वा, वाउ आगासपंचमा ॥ एए पंच महब्भूया, तेव्भो एगो त्ति आहिया । अह तेसिं विणासेणं, विणासो होइ देहिणो || --- सूय ० अ १ । अ ११ गा ७-८ । पृ० १०१ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009528
Book TitleKriya kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1969
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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