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क्रिया-कोश
विनाश होने पर आत्मा का धारण नहीं होता है । जीव का शरीर के साथ ही जीवितव्य है ।
जब शरीर मृत होता है तब उसको जलाने के लिए बंधु-बांधव श्मशान आदि में ले जाते हैं। अग्नि में शरीर के जलने से केवल कापोत वर्णवाली अस्थि रह जाती है । मंचआसंदी होने से पाँच पुरुष अन्यथा चार पुरुष उस मृत शरीर को जलाकर गाँव में आते हैं । यदि आत्मा शरीर से भिन्न होता तो निकलता हुआ दिखाई देता लेकिन दिखाई नहीं देता है । इस प्रकार जीव असद् -- अविद्यमान और अविद्यमान होने से जाना नहीं जा सकता है। अतः जो जोव को असद् - अविद्यमान तथा अविद्यमान होने से अज्ञेय कहते हैं उनका पक्ष सु-आख्यात है अर्थात् उनका कथन सत्य है !
जीव अन्य है, शरीर अन्य है-ऐसा जो कहते हैं वे अज्ञानी हैं । यह जीव शरीर से भिन्न है तो इसका क्या प्रमाण है ? आत्मा दीर्घ है या हस्व ; वर्तुल या गोल या त्रिकोण या चतुष्कोण या लम्बी या षट्कोण या आठ कोण वाला है; काला या नीला या लाल या पीला या धोला वर्ण वाला है; सुरभिगंध वाला या दुरभिगन्ध वाला है; तिक्तरस या कटुरस या कषाय रस या आम्लरस या मधुररस वाला है ; कर्कश स्पर्श या मृदुस्पर्श या लघुस्पर्श या गुरुस्पर्श या उष्णस्पर्श या शीतस्पर्श या स्निग्धस्पर्श या रुक्षस्पर्श वाला है । इस प्रकार जीव असद् -- अविद्यमान है और अविद्यमान होने से जाना नहीं जा सकता है अतः जो जीव को असद् --- अविद्यमान होने से अज्ञेय कहते हैं उनका पक्ष सु-आख्यात है अर्थात् उनका कथन सत्य है । जीव अन्य है, शरीर अन्य है—ऐसा जो कहते हैं वे जीव को शरीर से भिन्न पा नहीं सकते हैं ।
जिस प्रकार कोई पुरुष भ्यान से तलवार, आँवला, दही से मक्खन, तिल से तेल, इक्षु से अलग-अलग दिखला सकता है उस प्रकार कोई भी करके नहीं दिखला सकता है । इस प्रकार जीव होने से जाना नहीं जा सकता है अतः जो जीव को हैं उनका पक्ष सु-आख्यात है अर्थात् उनका कथन ऐसा जो कहते हैं वह मिथ्या है अर्थात् जीव और असत्य है ।
*११ पंचस्कंधवादी
१ परिभाषा / अर्थ :
तिनके से मुंज, मांस से हड्डी, हथेली से रस, अरणी से अग्नि निकाल कर पुरुष शरीर और जीव को अलग-अलग असद् - अविद्यमान है और अविद्यमान असद् — अविद्यमान होने से अज्ञेय कहते सत्य है । जीव अन्य है, शरीर अन्य है शरीर को भिन्न कहना प्रत्यक्ष में ही
पंच खंधे वयतेगे बाला उ खणजोश्णो । अन्नो अणन्नो नेवाहु हेउयं च अहेउयं ॥
- सूय ० श्र १ | अ १ । उ १ । गा १७ । पृ० १०१
"Aho Shrutgyanam"