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क्रिया कोश
२६१ लोक नित्य है, क्योंकि उत्पाद और विनाश होता है-आविर्भाव-प्रगट होना तथा तिरोभाव–अन्तर्भाव होना मात्र है । शशक के सोंग की तरह ‘असत' का उत्पाद नहीं होता है तथा घट की तरह 'सत्' का विनाश भी नहीं होता है क्योंकि घट का सर्वथा विनाश नहीं होता है। कपालादि अवस्था अपारमार्थिक है अतः उसकी अपारमार्थिकता के कारण उसकी परिणति होती है। मिट्टी रूप सामान्य पारमार्थिकता है अतः उसका विनाश नहीं होता है। स्थिर एक रूप एकान्त नित्य की स्वीकृति के द्वारा सकल क्रिया का लोप स्वीकार करने वाला-नित्यवादी अक्रियावादी है ।
८ नास्ति परलोकवादीपरिभाषा / अर्थ----
न सन्ति परलोगे वा इति नेति- न विद्यते शान्तिश्च मोक्षः परलोकश्चजन्मान्तरमित्येवं यो वदति सः।
- ठाण० स्था ८। सू ६०७ 1 टीका परलोक नहीं है । शांति-मोक्ष, परलोक, जन्मान्तरादि नहीं है ऐसा नास्ति परलोकवादी अक्रियावादी कहता है।
'२ नास्ति परलोकवादी के मत का प्रतिपादन
नास्त्यात्मा प्रत्यक्षादिप्रमाणविषयत्वात् खरविषाणवन्न, तभावान्न पुण्यपाप-लक्षणं कर्म, तद्भावान्न परलोको नापि मोक्ष इति ।
-ठाण० स्था८। सू ६०७ । टीका गधे के सोंग की तरह प्रत्यक्षादि प्रमाण के द्वारा आत्मा के अस्ति की सिद्धि नहीं होती है अतः आत्मा नहीं है । आत्मा के अभाव में पुण्य, पापादि कर्म भी नहीं है तथा उनके अभाव में परलोक भी नहीं है, मोक्ष भी नहीं है । ६ वामलोकवादीपरिभाषा / अर्थ -
xxxxणथि काइकिरिया वा अकिरिया वा एवं भणंति णत्थि वाइणो वामलोयवाई।
-प्रश्न० अ २ । सू ७ 1 पृ० १२०६ लोक का वास्तविकता से विपरीत स्वरूप कहने वाले को नास्तिकवादी कहते हैं यथा-क्रिया नहीं है, अक्रिया नहीं है ।
१० तज्जीवतच्छरीरवादी लोकायतिक
परिभाषा / अर्थ
(क) उर्ल्ड पायत्तला अहे केसग्ग-मत्थया तिरियं तय-परियंते जीवे, एस आया-पजवे कसिणे । एस जीवे जीवइ, एस मए णो जीवइ , सरीरे धरमाणे धरइ, विट्ठमि य णो धरइ । एयं तं जीवियं भवइ ।
--सूय श्रु २ । अ १ । स ६ । पृ० १३७
"Aho Shrutgyanam"