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क्रिया - कोश
सम्बन्धरहित नाश मानते हैं । जैसे कहा है--" प्रत्येक क्षण में कार्य के होने के कारण क्षणिक मस्तु का सत् - अस्तित्व सिद्ध होता है । यदि कार्य का होना न मानकर वस्तुतत्त्व को स्वीकार सत् मानने का प्रसंग आयेगा अर्थात् अर्थ क्रिया से क्षणिक वस्तु की सिद्धि
किया जाय तो खरविषाण ( गधे के सींग ) को भी क्षणिक वस्तु हो अर्थक्रिया करती है तथा इस होती है ।"
उनका कथन है कि नित्य वस्तु क्रमशः कार्य नहीं कर सकती ! क्योंकि नित्य वस्तु की एक स्वभावता होने के कारण कालान्तर में होनेवाले सब कार्य के अभाव का प्रसङ्ग आयेगा तथा प्रत्येक क्षण में अन्य अन्य स्वभाव की उत्पत्ति होने के कारण नित्यत्व की हानि होगी तथा एक साथ नित्य वस्तु कार्य कर नहीं सकती है । क्योंकि एक साथ कार्य नहीं करने का प्रत्यक्ष से सिद्ध है । इससे सिद्ध होता है कि क्षणिक वस्तु ही कार्य करती है ।
वस्तु के निरन्वय नाश का अभ्युपगम होने से ही परलोक का अभाव होता है तथा फल के अर्थी जीवों को क्रिया में अप्रवृत्ति होती है अर्थात् वस्तु के क्षणिक मानने के कारण किया का कर्त्ता दूसरा है तथा फल-भोक्ता दूसरा है । प्रवर्तक को समस्त क्रिया में असंख्यात समय लगता है तथा असंख्यात समय में होने वाले अनेक अक्षर के उल्लेखवाले विकल्प का प्रति समय क्षय होने पर एक इच्छित प्रत्यय के अभाव से समस्त व्यवहार का उच्छेद हो जाता है । इस कारण से एकान्त क्षणिक मत- - समुच्छेदवाद से अर्थक्रिया की सिद्धि नहीं होती है । उपर्युक्त सम्यग् कथन न होने के कारण समुच्छेदवादी को अक्रियावादी कहा जाता है ।
७ नित्यवादी
'१ परिभाषा / अर्थ
नियतं -- नित्यं वस्तु वदति यः स - -नित्यवादी ।
-ठाण स्था८ । सू । ६०७ | टोका जो वस्तु को नियत --- नित्य मानता है वह नित्यवादी है । -२ नित्यवादी के मत का प्रतिपादन ---
नित्यो लोकः, आविर्भावतिरोभावमात्रत्वादुलादविनाशयोः, तथा असतोऽनुत्पादाच्छशविषाणस्येव सतश्चाविनाशात् घटवत्, नहि सर्वथा घटो विनष्ट: कपालाद्यवस्थाभिस्तस्य परिणतत्वात्, तासां चापारमार्थिकत्वात्, मृत्सामान्यस्यैव पारमार्थिकत्वात् तस्य चाविनष्टत्वादिति, अक्रियावादी चायमेकान्तनित्यस्य स्थिरैकरूपतया सकलकिया विलोपाभ्युपगमादिति ।
"Aho Shrutgyanam"
ठाण० स्था । स ६०७ । टीका