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क्रिया-कोश
२८६ अनुभूति होती है, दुःख से दुःख की प्राप्ति-अनुभूति होती है क्योंकि कारण के अनुरूप कार्य होता है । यथा-शुक्ल तंतुओं से बुने जाने वाला वस्त्र रक्तवर्ण नहीं होता है परन्तु शुक्लवर्ण ही होता है इसी प्रकार सुख का आसेवन करने से सुख ही होता है, दुःख नहीं होता है ।
“कोमल शय्या में सोना, प्रातःकाल उठकर पेय पीना, मध्याह्न में भोजन करना, अपराह्न में पानक पीना, अर्धरात्रि में द्राक्षा, खांड, शक्कर खाना-ऐसा सुख का अनुशीलन करने से अन्त में मोक्ष-~सुख होता है—ऐसा शाक्यपुत्र ने अपनी ज्ञान दृष्टि से देखा है ।
पारमार्थिक प्रशम सुखरूप संयम, तप से दुःख का अभि-उपगम होता है तथा विषय सुख से मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है--ऐसा प्रतिपादन करने के कारण सातवादी को अक्रियावादी कहा जाता है।
.६ समुच्छेदवादीपरिभाषा | अर्थ--- समुच्छे-प्रतिक्षणं निरन्वयनाशं वदति यः सः समुच्छेदवादी।
- ठाण० स्था ८ ! सू ६०७ । टीका प्रत्येक वस्तु का निरन्वयनाश अर्थात् सन्ततिरहित--सम्बन्धरहित नाश को मानने वाले को समुच्छेदवादी कहा जाता था ! वस्तु नित्य नहीं है परन्तु क्षणिक है । वे क्षणिक वस्तु में अर्थ क्रिया का होना मानते थे।
समुच्छेदवादी के मत का प्रतिपादन---
समुच्छेद-प्रतिक्षणं निरन्वयनाशं बदति यः स समुच्छेदवादी, तथाहिवस्तुनः सत्त्वं कार्यकारित्वं, कार्याकारिणोऽपि वस्तुत्वे खरविषाणस्यापि सत्त्वप्रसंगात्, कार्य च नित्यं वस्तु क्रमेण न करोति, नित्यस्यकस्वभावतया कालान्तरभाविसकलकार्याभावप्रसंगात्, न चेदेवं प्रतिक्षणं स्वभावान्तरोत्पत्त्या नित्यत्वहानिरिति, योगपद्यनापि न करोति अध्यक्षसिद्धत्वाद्योगपद्याकरणस्य, तस्मात् क्षणिकमेव वस्तुकार्य करोतीति, एवं च अर्थक्रियाकारित्वात् क्षणिक वस्त्विति, अक्रियावादी चायमित्थमवसेयः-निरत्वयनाशाभ्युपगमे हि परलोकाभावः प्रसृजति, फलार्थिनां च क्रियास्व. प्रवृत्तिरिति, तथा सकलक्रियासु प्रवर्तकस्यासंख्येयसमयसम्भव्यनेकवोल्लेखवतो विकल्पस्य प्रतिसमयक्षयित्वे एकाभिसन्धिप्रत्ययाभावात् सकलव्यवहारोच्छेदः स्यादत एवैकान्तक्षणिकात् कुलालादेः सकाशादर्थक्रिया न घटत इति, तस्मात् पर्यायतो वस्तुसमुच्छेदवद् द्रव्यतस्तु न तथेति ।
.-ठाण० स्था ८ । सू ६०७ । टीका समुच्छेदवादी का कथन है कि प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण नाश को प्राप्त होती है अर्थात् प्रथम क्षण में जो वस्तु थी वह दूसरे क्षण में नहीं रही। वे वस्तु का निरन्वय-सन्ततिरहित--
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