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क्रिया-कोश
उत्पन्न होता है, पृथ्वी में वृद्धि को प्राप्त होता है, करके स्थित है, पृथ्वी के आश्रय से स्थित है, उसी
४ जिस प्रकार वृक्ष पृथ्वी में पृथ्वी से अपृथक् है, पृथ्वी को व्याप्त प्रकार इस लोक का यावत् ईश्वर के आश्रय से स्थित है ।
५ - जिस प्रकार पुष्करिणी - लडाग पृथ्वी से उत्पन्न होता है, पृथ्वी में ही वृद्धि को प्राप्त होता है, पृथ्वी से अपृथक् है, पृथ्वी को व्याप्त करके स्थित है, पृथ्वी के आश्रय से स्थित है उसी प्रकार इस लोक का यावत ईश्वर के आश्रय से स्थित है ।
६-- जिस प्रकार उदक पुष्कल अर्थात् कमल जल में उत्पन्न को प्राप्त होता है, जल से अपृथक् है, जल को व्याप्त करके स्थित का आदि कारण पुरुष - ईश्वर है यावत् ईश्वर के आश्रय से स्थित है । ७-- जिस प्रकार जल का बुद्बुद् जल में उत्पन्न होता है, जल में ही वृद्धि को प्राप्त होता है, जल से अपृथक् है, जल को व्याप्त करके स्थित है, जल के आश्रय से स्थित है उसी प्रकार इस लोक का आदि कारण पुरुष ईश्वर है यावत् ईश्वर के आश्रय से स्थित है ।
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५ सातवादी
परिभाषा / अर्थ :
सातं --- सुखमभ्यसनीयमिति वदतीति सातवादी ।
- ठाण० स्था ८ सू ६०७ । टीका सुख भोग से सुख प्राप्त होता है, दुःखभोग से दुःख प्राप्त होता है, अतः सुखभोग करो | ऐसा प्रतिपादन करनेवाला सातवादी है ।
होता है, जल में वृद्धि उसी प्रकार इस लोक
सातवादी के मत का प्रतिपादन
सातं - सुखमभ्यसनीयमिति वदतीति सातवादी, तथाहि - भवत्येववादी कश्चित् - सुखमेवानुशीलनीयं सुखार्थिना, न त्वसातरूपं तपोनियमब्रह्मचर्यादि, कारणानुरूपत्वात् कार्यस्य नहि शुक्लैस्तन्तुभिरारब्धः पटो रक्तो भवति अपि तु शुक्ल एव, एवं सुखासेवनात् सुखमेवेति, उक्त च - " मृद्वी शय्या प्रातरुत्थाय पेया, भक्त मध्ये पानकं चापराह्न । द्राक्षाखण्डं शर्करा चार्द्धरात्रे, मोक्षश्चान्ते शाक्यपुत्रेण दृष्टः #211" अक्रियावादिता चास्य संयमतपसोः पारमार्थिप्रशमसुखरूपयोः दुःखत्वेनाभ्युपगमात् कारणानुरूपकार्याभ्युपगमस्य च विषयसुखादननुरूपस्य निर्वाणसुखस्याभ्युपगमेन बाधित्वादिति । - ठाण० स्था । सू ६०७ 1 टीका सातवादी का कथन है कि सुख के इच्छुक जीव सुख का अनुशीलन करें किन्तु असाता – दुःखरूप तप, नियम, ब्रह्मचर्यादि का अनुशीलन न करें। सुख से सुख की प्राप्ति
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