________________
क्रिया - कौश
लोक को ईश्वर के द्वारा कृत मानने वाले मत का कथन था कि (१) सचेतन-अचेतन स्वरूप लोक का आदि या आदि कारण पुरुष -- ईश्वर है ; (२) यह लोक पुरुष प्रधान है। जिसका प्रधान कार्य पुरुष है उसको पुरुषप्रधान कहा जाता है, (३) यह लोक पुरुष-प्रणीत है, पुरुष के द्वारा रचित है, (४) यह लोक पुरुषसंभूत है, पुरुष ने इसको उत्पन्न किया है, (५) यह लोक पुरुष से प्रकाशित है, (६) यह लोक पुरुष का अनुगामी है, इससे अपृथक् है, (७) यह सर्व लोक पुरुष को व्याप्त करके स्थित है । लोक ईश्वर के आश्रय से स्थित है।
२८६
तेजो एवं विपडिवेदेति, तंजहा - कि रियाइ वा जाव (सुक्कडे इ वा दुकडे इवा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहु इ वा असाहु इ वा सिद्धि इ वा असिद्धि इ वा निरए इ वा) अनिरए इ वा । - सूय० श्रु २ । अ १ । स् ११ । पृ० १४० वे निर्मितवादी क्रिया, अक्रिया, सुकृत, दुष्कृत, कल्याण, पुण्य, पाप, साधु, असाधु, सिद्धि, असिद्धि, नरक, स्वर्ग आदि नहीं मानते थे ।
आहु:-- “ आसीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम् । अप्रतर्क्यमविज्ञ ेयं, प्रसुप्तमिव सर्वतः ||१|| तस्मिन्नेकार्णवीभूते, नष्टस्थावरजंगमे । नष्टामरनेर चैव, प्रणष्टीरगराक्षसे ||२|| केवलं गहरीभूते, महाभूतविवर्जिते । अचिन्त्यात्मा विभुस्तत्र, शयानस्तप्यते तपः ||३|| तत्र तस्य शयानस्य, नाभेः पद्मविनिर्गतम् ! तरुणरविमण्डलनिर्भ, हृदयं काञ्चनकर्णिकम् ||४|| तस्मिन् पद्मे तु भगवान् दण्डी यज्ञोपवीतसंयुक्तः । ब्रह्मा तत्रोत्पन्नस्तेन जगन्मातरः सृष्टाः ||५|| अदितिः सुरसंघानां दितिरसुराणां मनुमनुष्याणाम् । विनता विहङ्गमानां माता विश्वप्रकाराणाम् ॥ ६ ॥ कद्रः सरीसृपाणां सुलसा माता तु नागजातीनाम् । सुरभिश्चतुष्पादानामिला पुनः सर्वबीजानाम् ||७|| " इति, प्रमाणयति चासौ - बुद्धिमत्कारणकृतं भुवनं संस्थानवत्त्वात् घटवदित्यादि । - ठाण• स्था ८ 1 सू ६०७ | टीका जो ईश्वर, ब्रह्मा, पुरुषादि को जगत का कर्ता मानते थे वे निर्मितवादी थे । वे मानते थे कि यह जगत अन्धकारमय, नहीं जाना हुआ, लक्षण रहित, तर्क नहीं करने योग्य, अज्ञेय, सर्वतः प्रसुप्त था । स्थावर और जंगम रहित, देव-मनुष्य रहित, केवल गुफा की तरह पंच महाभूत से रहित इस जगत में अचिन्त्य आत्मा - विभु ईश्वर है जो सोया हुआ तप से aपित था । वहाँ सोये हुए उसकी नाभि से मध्याह्न सूर्यमण्डल की कान्ति की तरह सुन्दर तथा सुवर्ण की कर्णिका वाला पद्म ( कमल) निकला। उस पद्म से भगवान् दण्ड को धारण करने वाले, यज्ञोपवीत संयुक्त ब्रह्मा हुए तथा उन्होंने जगत की आठ माताएँ रचीं :-- यथा - देवसमूह की माता -अदिति, असुरों की माता -- दिति, मनुष्यों की मातामनु, समस्त प्रकार के पक्षियोंकी माता – विनता, सरीसृप --सर्पादि की माता - कद्र, नाग
"Aho Shrutgyanam"